Thursday, May 12, 2011

गेम्स और स्पोर्ट्स (N.E.C.F.2011 )

पिछली पोस्ट फैशन शो से आगे इस बार यहां के लोकल गेम्स के बारे मे है ये पोस्ट

अगले दिन सुबह हम लोगों ने इनके ट्रेडिशनल गेम्स को भी देखने की सोची और बस पहुँच गए । वहां पहुंचे तो देखा कि तीर अन्दाजी का competition चल रहा था जिसमे हर tribe के २ लोग निशाने पर तीर मार रहे थे। इसमें कुछ दूरी पर टीन का एक स्टैंड सा बना कर उसमे कागज़ को कार्ड बोर्ड पर चिपकाया था और उसमे तीन सर्किल बनाए थेसबसे छोटे सर्किल को लाल रंग से रंगा था और सभी को तीर इस लाल रंग वाले सर्किल पर मारना थाहर तीर अंदाज को चांस मिलते थेइस खेल मे सावधानी बरतनी पड़ती है की कोई टीन के पीछे की तरफ ना हो क्यूंकि कई बार निशाना चूकने पर तीर किसी को लग भी सकता है और इस तीर अन्दाजी के competition मे खामप्ती,निशि,युबिन,वगैरा भाग ले रहे थे। और इस तीर अन्दाजी के competition को युबिन pastor ने जीता था।

सुबह ५ बजे से मैराथन दौड़ भी हुई थी जिसमे भी युबिन tribe के लोग ही जीते थे । आप को जानकार आश्चर्य होगा की युबिन अरुणाचल के विजयनगर डिस्ट्रिक्ट मे रहते है जहाँ पिछले १-२ साल से सड़क बनाने का कार्य शुरू हुआ है पर अभी पूरा नहीं हुआ है और अभी तक ये लोग पैदल ही एक जगह से दूसरी जगह जाते है। और विजयनगर से miao शायद ८० या १०० की-मी है ।
जैसे ही ये competition ख़त्म हुआ तो वहीँ दूसरा competition शुरू हो गया जिसमे पंगवा tribe के ही २ ग्रुप ने भाग लिया । इस खेल का नाम तो हम भूल गए है (क्यूंकि थोड़े कठिन नाम होते है )पर इसमें ये लोग जमीन पर कुछ सपाट पत्थर को कुछ दूरी पर खड़ा करके एक लाईन सी बनाते है और खिलाड़ी पैर की ऊँगली पर एक पत्थर रख कर उछाल कर इन पत्थरों से बनी लाईन को गिराते है।और आखिरी पत्थर को हाथ से उछाल कर बिलकुल जैसे कंचे खेलते है उस तरह से गिराते है। जो टीम जितना जल्दी पत्थर गिराती है वो जीत टीम जाती है।

इसके गेम के ख़त्म होते ही गोरखा लोगों का गेम शुरू हुआ ,बिलकुल गिल्ली डंडे जैसा । बस इसमें फर्क ये था की इसमें गिल्ली कैच करने की बजाये दूसरी टीम के खिलाड़ी डंडे से ही उछालते थे । इसमें भी २ गोरखा टीम ने भाग लिया।

और इसके बाद बहुत ही मजेदार खेल हुआ जिसमे खिलाड़ी बम्बू पर खड़े होकर एक-दूसरे को बम्बू से गिराने की कोशिश करते है। इस खेल मे भी २ टीमें खेलती है और जिस टीम के सभी खिलाड़ी बम्बू से गिर जाते है वो टीम हार जाती है। इस पूरी बम्बू फाईट के दौरान खिलाड़ियों को जोश और उत्साह देने और खेल का रोमांच बनाए रखने के लिए एक आदमी ढोल बजाता रहता है। इसमें खिलाड़ियों की दोनों टीमें सिर पर अलग तरह का हेड गियर पहनती है। ताकि दोनों टीमों को अलग से पहचाना जा सके।

इन खेलों के अलावा बम्बू बोट रेस भी हुई । और इसे देखने के लिए हम लोग फेस्टिवल साईट से थोड़ी दूर उबड़-खाबड़ रास्तों से और रिवर बेड जिसमे पत्थरों से भरे रास्ते से होते हुए नदी के किनारे पहुंचे । पर हम लोग जहाँ खड़े थे वहां पहुंचकर समझ नहीं आया की हम लोग तो इतने ऊपर है तो बम्बू बोट रेस कैसे होगी। पूछने पर पता चला कि नदी के दूसरे छोर से ये बोट रेस होनी थी। इस रेस मे १० टीमों को हिस्सा लेना था पर सिर्फ ६ टीमें ही आई ।

खैर हर बोट मे २ खिलाड़ी थे और ये बोट ८-९ बम्बू को रस्सी से बांधकर बनाई गयी थे और इसे चप्पू नहीं बल्कि बम्बू से चलाना भी था। पहले राउंड मे ४ टीमों ने भाग लिए। और इसके लिए इन चारों टीमों को इस छोर से उस छोर तक जाना था । और चूँकि पानी का बहाव उल्टा था तो इन लोगों को अपनी बम्बू बोट ले जाने मे काफी मशक्कत करनी पड़ी।



एक-दो टीम की बोट तो पानी के बहाव के साथ ही बह चली तो एक टीम के खिलाड़ी अपनी नाव को कंट्रोल करने के चक्कर मे पानी मे ही गिर पड़े थे। खैर काफी जद्दो-जहत के बाद पहली ४ टीम दूसरे किनारे पहुंची और रेस के लिए तैयार हुई।
और फिर लाइफ बोट मे फेस्टिवल की कमेटी के चार लोग नदी के उस पार गए । और जब सभी टीम वहां पहुँच गयी तो उन सबको rules बताये गए । और फिर जैसे ही भोपूं बजाया गया चारों टीम तेजी से अपनी-अपनी बम्बू बोट को चलाते हुए किनारे के तरफ आने लगे जिसमे ३ बोट तो पानी के बहाव से आपस मे टकराती हुई चलने लगी और चौथी टीम की बोट आराम और अकलमंदी से जल्दी-जल्दी किनारे की तरफ आने लगी। और जीत गयी।


इन सभी खेलों की ख़ास बात थी सभी खिलाड़ियों को अपनी पारम्परिक वेशभूषा पहन कर ही खेल मे भाग लेना था।
यूँ तो यहां के लोकल खेल देखने का हमारा ये पहला अनुभव था इसलिए काफी मजा आया था।

वैसे बम्बू रेस का वीडियो हमने you tube पर लगाया है:)


3 comments:

  1. ममता जी, नमस्कार
    आपको तो वहां के भी सारे खेल आ गये होंगे

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  2. ममता जी,
    मैं नॉर्थ-ईस्ट खासकर अरुणाचल के लिये एलटीसी लेने की सोच रहा हूं। तो आपसे गुजारिश है कि पांच-चार भयानक-भयानक सी सलाहें दे दीजिये। अकेला रहूंगा, क्या करना होगा, क्या नहीं करना होगा, यह भी बता देना।
    धन्यवाद।

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  3. नीरज जी यहां घूमने के लिए बस यही कहेंगे फिजिकली और मेंटली फिट रहने की जरुरत है क्यूंकि बकौल कुछ लोगों के यहां की सड़कें पॉप-कोर्न रोड है और मौसम का कोई भरोसा नहीं है। :)

    वैसे सबसे अच्छा घूमने का समय अक्तूबर से मार्च तक का होता है।

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