Tuesday, October 26, 2010

कुदरत के करिश्मे अरुणाचल के खूबसूरत पतंगे .... :)

कहीं आप लोग ये तो नहीं सोच रहे है कि आज अरुणाचल कि सैर कराने की जगह ये अरुणाचल के पतंगों के बारे मे पोस्ट क्यूँ।तो हमे यकीन है कि इस पोस्ट को पढने के बाद आप भी यही कहेंगे
आम तौर पर हम लोग पतंगों की तरफ कभी ध्यान नहीं देते है और ना ही उन्हें देखने की जरुरत ही समझते है पर यहां पर इन्हें इतने करीब से देखने पर लगा कि ये सिर्फ पतंगे नहीं बल्कि कुदर का एक करिश्मा है। जिससे हम लोग अनजान रहते है।
बेहद रंगीन (colourful) और डिजाइनदार और एक से बढ़कर एक । और हमें यकीन है की इन चंद फोटो को देखने के बाद आप भी यही कहेंगे।


अरे भई पतंगे इतने खूबसूरत और रंग-बिरंगे हो सकते है हमने तो ऐसा सोचाभी नहीं था पर जैसा कि हर जगह हम लोग कुछ नया देखते है तो यहां पर इतने अलग-अलग रंगों के पतंगे देखना भी बिलकुल ही नया अनुभव है।



और इन पतंगों को देख कर हम ये सोचने पर मजबूर हो जाते है कि कुदरत और भगवान ने इन्हेंकितना अनोखा बनाया है। हर पतंगे की अपनी ही विशेषता है।औ एक ख़ास बात ये सभी पतंगे रोज -रोज नहीं आते है बल्कि रोज नए आते है ।




अगर कभी हम ये सोचते है की चलो आज नहीं कल फोटो खींच लेंगे तो पता चला कि हम इंतज़ार ही करते रह जाते है। :)रात मे जो भी पतंगे आते है उनमे से कुछ फिर से वापिस नहीं उड़ कर जा पाते है क्यूंकि लाईट से टकराकर कुछ के पंख हल्के से टूट जाते है कुछ तो उड़ जाते है पर कुछ वापिस उड़ कर नहीं जापाते है।

इन खूबसूरत पतंगों के नाम तो हम नहीं जानते है पर हाँ इनके फोटो का एक अच्छा -ख़ासा collection हमारे पास हो गया है।



बारिश के दिनों (यहां तकरीबन पिछले ८ महीने से बारिश हो रही थी) मे तो रोज ही ढेरों पतंगे आ जाते थे पर आजकल बारिश बंद होने से इनका आना कुछ कम हो गया है। पर फिर भी रो एक-दो नए पतंगे नजर आ ही जाते है। :)





और हाँ ना केवल पतंगे बल्कि यहां पर कई तरह के मच्छर और मेढक भी हम देख चुके है। अब इतने बड़े पैरों वाले मच्छर को तो हमने पहली बार ही देखा है। :)


३-४ तरह के अलग -अलग रंग के मेढक देख चुके है । :)

चलिए तो आप लोग इन पतंगों को देखिये और बताइये क्या हमने कुछ गलत कहा है।

Thursday, September 9, 2010

Tak-Tsang Monastery यानि टी गुम्पा (तवांग ५ )

जैसा की हमने अपनी पिछली पोस्ट फ्रोजन लेक्स मे कहा था तो चलिए आज माधुरी लेक से आगे चलते है यानी टी .गुम्पा चलते है। माधुरी लेक से बस ५ की.मी.की दूरी पर ये छोटी सी Monastery है और ये Monastery बिलकुल पहाड़ के एक कोने पर बनी है। इस Monastery को Tak-Tsang या Tiger's Den भी कहा जाता है क्यूंकि यहां के लोगों का कहना है कि यहां पर जब इनके गुरु पदमासंभव आये थे तो एक टाइगर ने उनका स्वागत किया था और ये भी माना जाता है कि बहुत समय तक वहां पर टाइगर आते थे हालाँकि अब वहां टाइगर नहीं आते है। :)यहां तक जाने का रास्ता उबड़-खाबड़ तो जरुर था पर जल्दी ही इस रास्ते से होते हुए हम लोग इस टी.गुम्पा पर पहुँच गए। यहां पहुँचते ही चारों ओर से जोर-जोर से हवा की आवाज बिलकुल फ़िल्मी स्टाइल मे सुनाई देने लगी और चारों ओर लगे झंडे फडफडाते हुए खूब जोर-जोर से हवा मे झूमते हुए हिल रहे थे।और जैसा की इन झंडों के लिए कहा जाता है कि ये वातावरण को शुद्ध करते है उस बात को बिलकुल सही साबित कर रहे थे। और इस हवा की वजह से हम सबका ठण्ड के मारे बुरा हाल था जबकि टोपी और जैकट से हम सभी पूरी तरह से लैस थे ,और धूप भी काफी थी
गाडी से उतर कर एक खूबसूरत से गेट से हम लोग अन्दर दाखिल हुए तो सामने ही एक छोटी पर सुन्दर सी Monastery दिखाई दी। और तभी वहां के लामा अपने घर से निकलकर बाहर आये और हम लोगों ने लामा से मुलाकात कर उनसे इस गुम्पा के बारे मे जानकारी चाही। तो उन्होंने सबसे पहले मुख्या प्रार्थना भवन के बायीं ओर के पेड़ को दिखा कर बताया कि ऐसा कहा जाता है कि जब गुरु पदमासंभव यहां आये थे तो उन्होंने इसी पेड़ के नीचे आराम किया था और अपने घोड़े को इसी पेड़ से बाँधा था और अब इस पेड़ को बहुत ही auspicious माना जाता है ।जैसा कि आप इन झंडो को देख कर समझ सकते है। वहां आस-पास २-४ घर दिख रहे थे और Monastery के साथ ही लामा का घर बना हुआ था जहाँ लामा जी अकेले ही रहते है। और बातचीत मे जब उन्होंने इसे टाइगर डेन कहे जाने की बात कही तो अनायास ही हमने उनसे पूछ लिया की क्या आपको रात मे यहां अकेले डर नहीं लगता की कहीं टाइगर ना जाए तो वो बोले कि नहीं डर नहीं लगता है क्यूंकि अब टाइगर क्या रात मे तो इंसान भी नहीं आते है। वैसे दिन मे भी दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आता है। :)
इस गुम्पा मे प्रवेश करने के पहले हम लोगों ने जूते उतारे और अन्दर प्रवेश किया तो सामने पदमासंभव की सुनहरी प्रतिमा दिखाई दी और इस प्रतिमा के चारों ओर भगवान बुद्ध के विभिन्न रूप दिखाई दिए और इस प्रतिमा के नीचे का बड़ा दीपक जल रहा था और साथ ही स्टील की छोटी-छोटी कटोरी मे पानी रक्खा था ।यहां पर भी हम लोगों ने सफ़ेद khoda चढ़ाया और जैसे ही इस प्रतिमा के दर्शन करके आगे बढ़ते है तो बायीं ओर दलाई लामा की फोटो नजर आती है।और यहां भी फोटो के नीचे छोटी-छोटी कटोरी मे पानी रक्खा था तो जिज्ञासा वश हमने लामा से पूछा कि इन कटोरियों मे पानी रक्खने का कोई ख़ास कारण है तो इस पर लामा ने बड़ी सादगी से हमे बताया कि रोज सुबह सारी कटोरियों को साफ़ करके वो उनमे पानी भरते है और रोज शाम को सारी कटोरियों का पानी खाली करते है । और फिर हँसते हुए बोले कि भगवान की आराधना ही तो हमारा काम है।( तकरीबन ६०-७० कटोरियों मे पानी रक्खा था )

इस छोटी सी Monastery के अन्दर चक्कर लगा कर हम लोग बाहर आये और Monastery का बाहर से चक्कर लगाया और फोट-शोटो खींची । Monastery के गेट से सामने वाले पहाड़ पर देखने पर पहाड़ की ऊँची चोटी पर कुछ झंडे लगे दिखे पूछने पर पता चला कि वहां पर लोग ध्यान लगाने के लिए जाते है। वैसे अपनी तो वो ऊँची चढ़ाई देखकर ही हिम्मत जवाब दे गयी थी। :)
वहां
लामा से हम लोग बात कर ही रहे थे कि तभी ये दो छोटे से बच्चे आये । यहां के बच्चे बड़े ही जोशीले है । जब भी हम लोगों की गाडी कहीं से गुजरती और अगर वहां कुछ बच्चे होते तो बच्चे पूरे जोश से हाथ हिला-हिला कर wave करते । और कैमरा देख कर तो बच्चे बहुत खुश होते है ।और झट फोटो के लिए pose दे देते है। :)

Monday, August 23, 2010

फ्रोजन लेक्स ऑफ़ तवांग frozen lakes of tawang (तवांग ४)

तवांग की यात्रा के दौरान वहां की फ्रोजन लेक्स के बारे मे पता चला जिसे सुनकर थोडा आश्चर्य भी हुआ की तवांग जैसी जगह मे लेक्स भी है । वहां पर छोटी-बड़ी बहुत सारी तकरीबन १०० से भी ज्यादा लेक्स है पर उनमे से कुछ बहुत मशहूर है जैसे PT Tso (panggang- teng- Tso ) जो की १४ की.मी. की दूरी पर है और वहां से तकरीबन २०-२५ की.मी. आगे जानेपर jong-nga-tseir या shungetser lakeजिसे अब माधुरी लेक भी कहा जाता है ,पड़ती है ।और पूरे ४० -४५ की.मी. के रास्ते मे ढेरों लेक्स पड़ती है जिन्हें देखकर मन खुश होता रहता है। हालाँकि रास्ता बहुत खराब है और बहुत ही दुर्गम से पहाड़ है पर थोड़ी-थोड़ी बर्फ पहाड़ों पर जमी हुई, याक , लेक्स और रास्ते भर आर्मी की गाड़ियों को देखते हुए वो खराब रास्ता भी पार हो जाता है ।पूरे रास्ते बस आर्मी के कैंप और बंकर नजर आते है।

तो अगले दिन सुबह सुबह वहां जाने का कार्यक्रम बनाया गया और साथ मे खाना-पानी वगैरा भी पैक करा गया क्यूंकि इन लेक्स पर कहीं भी कुछ भी खाने के लिए नहीं मिलता है। और रास्ते मे कुछ मिलने का सवाल ही नहीं है। खैर सुबह २ गाड़ियों (टाटा सुमु ) मे हम लोग चले ।

तो सबसे आर्मी की एक चेक पोस्ट पड़ी और वहां पर एंट्री करके आगे चले तो ५ की.मी.जाने पर आर्मी की एक और चेक पोस्ट हर मैदान फ़तेह मराठा ग्राउंड पड़ी जहाँ एक बार फिर से एंट्री करनी पड़ी और फिर वहां से आगे बढ़ने पर पेड़ों और पहाड़ों पर जमी बर्फ और इधर-उधर घूमते हुए याक नजर आये ।वैसे वहां के लोगों ने बताया की इस पूरे रास्ते बहुत सुन्दर orchids दिखते है जिनकी वजह से रास्ता बहुत खूबसूरत लगता है पर चूँकि उस समय सीजन नहीं था इसलिए हम orchids नहीं देख पाए।
६ की.मी. और आगे जाने पर PT Tso lake पड़ी और जब हम लोग कार से उतरे तो बूडूम - बूडूम की आवाज आई ।और जब लेक के पास पहुंचे तो बर्फ चटकने की आवाजें बिलकुल साफ़ सुनाई देनी लगी। और इस बूडूम-बूडूम मे एक अजीब सी गूँज सी हो रही थी। जिसे सुनकर बहुत रोमांच सा हो रहा था। लेक के इस तरफ बौद्ध धर्म के झंडे जिन्हें माना जाता है की ये हवा को और आस-पास के माहौल को शुद्ध करते है वो लगे हुए थे और लेक के दूसरी तरफ पहाड़ थे जिनमे कुछ हरे रंग के और कुछ लाल रंग के पेड़ और उन पर थोड़ी-थोड़ी बर्फ बड़ी अलग से लग रही थी


PT Tso पर कुछ फोटो वगैरा खींच कर हम लोग आगे चल पड़े तो थोड़ी दूर पर एक और आर्मी की चेक पोस्ट पड़ी।और यहां से एक रास्ता कट कर बूमला जाता है जो आगे चीन के बार्डर तक जाता है। खैर हम लोग बूमला ना जाकर आगे बढे और ऊँचे-नीचे उबड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए shungetser lake यानी माधुरी लेक की तरफ बढ़ते रहे ।रास्ते भर lakes तो बहुत दिखी पर उनमे से कुछ lakes आधी फ्रोजन यानी जमी हुई थी तो आधी मे पानी दिख रहा था।जैसे-जैसे माधुरी लेक के पास पहुँचने लगे तो सड़क के दोनों ओर और सड़क पर भी बर्फ दिखाई पड़ी। और इस माधुरी लेक के लिए कहा जाता है ये लेक १९७३ मे आई बाढ़ का परिणाम है। और हाँ इसे माधुरी लेक क्यूँ कहा जाता है ये तो ताया ही नहींवो क्या है ना की फ़िल्म कोयला की शूटिंग के लि माधुरी और शाह रूख खान यहां आये थे और बस उसके बाद से इस लेक को माधुरी लेक कहा जाने लगा।( ये माधुरी लेक की ऊपर से खींची हुई फोटो है )इस लेक पर पहुंचकर गाडी से उतरने पर पहले तो कुछ सेना के जवान दिखाई दिए और फिर हम लोग एक छोटे से लकड़ी के पुल से चलकर कच्चे-पक्के रास्ते से होते हुए इस फ्रोजन माधुरी लेक तक पहुँच गए।लेक के चारों और काले पत्थरों के पहाड़ दिखाई दे रहे थे और लेक के बीच-बीच मे सूखे हुए पेड़ के तने दिखाई दे रहे थे। और लेक पर पैर रखते ही एक अदभुद सा रोमांच हुआ पर हम लोग बहुत आगे तक नहीं गए पर हम लोगों के साथ गए हुए कुछ लोग चल कर लेक के बिलकुल बीच मे पहुँच गए थे और हमें भी कह रहे थे की मैडम डरिये मत ,आप लोग भी आ जाइए,पर हमारी हिम्मत नहीं हो रही थी (अरे भाई टी.वी.मे देखा है की किस तरफ अचानक ही बर्फ टूट जाती है ) पर जैसे ही बर्फ मे से ब्डूम की आवाज आई वो सभी चिल्लाते हुए दौड़ते हुए वापिस हम लोगों की तरफ भागे।फिर वहां बर्फ पर थोड़ी देर रूक कर हम लोग वापिस लौट कर बाहर आ गए और अपने साथ लाये हुए ब्रेड पकोड़ा ,सैंडविच ,पकोड़े, चाय,पेप्सी वगैरा खाया -पिया और एक बार फिर गाडी मे वापसी की यात्रा शुरू की।वैसे यहां पर एक रेस्तौरेंट बना हुआ है पर चलता कम है क्यूंकि वहां ज्यादा लोग जाते नहीं है। (उस दिन तो बंद ही था ) :(और जब हम लोग खा-पी रहे थे तो वहां ३-४ doggi आ गए थे ।और बहुत शांति से बैठ गए तो हम लोगों ने उनको भी खाना खिलाया। वहां से हम लोग २ बजे तक निकल लिए क्यूंकि वहां पर अँधेरा बहुत जल्दी हो जाता है और रास्ते मे लाईट होती नहीं है और रास्ते भी कुछ ज्यादा अच्छे नहीं है। और रास्ते मे कब क्या मुसीबत आ जाए कहा नहीं जा सकता।
वो ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्यूंकि जैसे हम ही लोग वापिस लौटने लगे तो ४-५ की.मी.बाद ही बीच सड़क मे एक आर्मी का ट्रक कुछ इस तरह से खराब हुआ था और सड़क पर खड़ा था की ना तो कोई गाडी आ सकती थी और ना ही जा सकती थी। और वो लोग आराम से गाडी बनाने मे लगे थे। १५-२० मिनट तक हम लोग खड़े रहे फिर हम लोगों ने ड्राईवर को कहा कि जाकर बोलो कि ट्रक को एक तरफ साईड मे कर ले । पर ट्रक को हिलाना भी आसान नहीं था क्यूंकि चढ़ाई पर ट्रक खराब हुआ था।और ड्राईवर के कहने पर पहले आर्मी वालों को समझ भी नहीं आया । उन्हें लगा कि क्या बेवकूफी की बात कर रहे है। पर खैर आधे घंटे बाद उनकी मदद के लिए एक और ट्रक आया और फिर उन लोगों ने ट्रक को थोडा धक्का देकर एक साइड मे किया और फिर हम लोग वहां से निकल पाए।इस lake से ५ की.मी. आगे टी. गुम्पा (Tak-Tsang Monastery) पड़ती है । उसका जिक्र अगली पोस्ट मे।

Thursday, August 19, 2010

कॉमन वेल्थ गेम्स क्वींस बैटन रिले ( C W G queen's baton relay in itanagar)

अब चाहे जितने भी scam हो कॉमन वेल्थ गेम्स को लेकर पर जिस भी राज्य मे क्वींस बैटन आती है वो पूरा राज्य जोश मे भर जाता है अब जैसे जुलाई मे जब क्वींस बैटन यहां आई तो ऐसा ही कुछ अरुणाचल मे भी हुआ था

जैसा
कि हम सभी को पता है कि इस साल अक्तूबर से दिल्ली मे कॉम वेल्थ गेम्स होने वाले है
और
इसके लिए लन्दन से क्वीन एलिजाबेथ 2 ने खिलाड़ियों के लिए न्देश इस बैट मे भेजा है और इस सन्देश को अक्तूबर को दिल्ली मे खेलों के उदघाटन समारोह मे पढ़ा जाएगा क्वीन के सन्देश के साथ इस बैटन ने २९ अक्टूबर २००९ मे बकिंघम पैलस से अपना सफ़र शुरू किया ये बैटन ७० देशों और पूरे भारत वर्ष मे घूमने के बाद अक्टूबर को दिल्ली पहुंचेगी

इस बैटन के साथ तकरीबन १०-१५ लोगों की टीम चलती है इस टीम को जनरल कदीयान लीड कर रहे थे इस बैटन की खासियत ये है कि जब इसमें लाईट जलती है तो भारत के झंडे का तिरंगा रंग इस बैटन पर नजर आता हैजो बहुत ही खूबसूरत लगता है दिन मे और रात मे बैटन बिलकुल अलग लगती है

और २२ जुलाई को कॉमन वेल्थ गेम्स की क्वींस बैटन अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर मे आई थी अरुणाचल प्रदेश दसवां राज्य है जहाँ ये बैटन अपना सफ़र करते हुए पहुंची थी अरुणाचल प्रदेश के दो डिस्ट्रिक्ट तवांग और ईटानगर मे इस बैटन को जाना था ,पहले इसे तवांग और फिर ईटानगर आना था और इसके लिए गौहाटी से इस बैटन को लेकर हेलीकाप्टर से तवांग के लिए लोग रवाना हुए पर भूटान के आगे मौसम खराब होने के कारण हेलिकॉप्टर वापिस गौहाटी लौट आया फि गौहाटी से हेलिकॉप्टर से ये बैटन ईटानगर गयीनाहारलागन हेलीपैड पर हेलीकाप्टर के पायलेट और पादी रिको इस बैटन के साथ
अब जब हम ईटानगर वापिस लौट आये है तो हम भी इस क्वींस बैटन रिले को देखने पहुँच गए सबसे पहले नाहर लागन हेलीपैड पर सवा दो बजे इस बैटन को पादी रिको जो की पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी है उन्होंने इसे रिसीव किया और बैटन का रिले शुरू हुआ जिसमे convoy और relay दोनों था बैटन के साथ शेरा जो की कॉमन वेल्थ गेम्स का मेस्कोट है वो भी आया था जैसा की आप इन कुछ फोटो मे देख सकते हैराजीव गाँधी स्टेडीयम मे बच्चों के बीच मे शेरा और नीचे वाली फोटो बैंक्वेट हाल की है जहाँ शेरा जब stage पर गए थे तो वापिस उतरने का नाम ही नहीं ले रहे थेपूरे stage पर घूम रहे थे :)और भाई जब हम relay देखने गए तो फिर शेरा से हाथ कैसे ना मिलाते :) चूँकि इस बैटन मे relay और convoy दोनों था इसलिए कुछ दूर खिलाडी दौड़ते थे तो कुछ दूर convoy इस बैटन को लेकर चलता थाये relay करीब घंटे की थीजिसमे नाहर लागन से होकर राजीव गाँधी स्टेडीयम,सांगो होटल,जेनरल हॉस्पिटल, लागुन ब्रिज,डी.सी. ऑफिस,राज भवन ,इटा फोर्ट,टी.जी.गुम्पा,लेजी काम्प्लेक्स,पंजाबी ढाबा,आई.जी.पार्क,बी.बी.प्लाज़ा,आकाशदीप मार्केट,निर्वाच वन,से होते हुए बैनक्वेट हॉल मे आनी थीयानी की पूरे ईटानगर मे इस बैटन को घुमाया गया
हेलीपैड से सबसे पहले एक काफिले के साथ इस बैटन को राजीव गाँधी स्टेडीयम ले जाया गया जहाँ इस बैटन को रक्खा या और फिर मुख्य अतिथि के छोटे से भाषण के बाद इस बैटन को gumpe rime जो की फूटबाल खिलाडी है ये बैटन उन्हें सौंपी गयी और gumpe rime ने पूरे स्टेडीयम का चक्कर लगाया
और वहां से ये बैटन अनेकों खिलाड़ियों और officials के हाथोंमे होती हुई शाम साढ़े बजे आई .जी. पार्क पहुंची और वहां से बैनक्वेट हॉल तक अलग-अलग खेलों जैसे फूटबाल,बैडमिनटन,और वेट लिफ्टिंग के खिलाड़ियों ने इस बैटन को लेकर रिले किया यानी इसे लेकर दौड़ेजब ये बैटन बैनक्वेट हॉल के गेट पर पहुंची तो वहां से अरुणाचल प्रदेश के स्पोर्ट्स सेक्रेटरी इस बैटन को लेकर दौड़े और पोर्टिको मे ये बैटन अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव को सौंपी गयी और वहां से मुख्य सचिव इस बैटन को लेकर बैनक्वेट हाल के अन्दर गए और इस बैटन को पेडस्टल या इसके स्टैंड पर रख दिया गया और फिर फोटो खींचने और खिंचवाने का सिलसिला शुरू हुआ और उसके बाद अरुणाचल प्रदेश की विभिन्न tribes ने शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया
अगले दिन २३ जुलाई को ये बैटन अरुणाचल प्रदेश से निकल कर अपने आगे के सफ़र पर चल पड़ी यानी कि दूसरे राज्य

Monday, August 16, 2010

ईटानगर मे स्वतंत्रता दिवस समारोह

कल १५ अगस्त को सारे भारत वर्ष की तरह ईटानगर मे भी स्वतंत्रता दिवस काफी जोश से मनाया गया। हालाँकि यहां एक दिन पहले बारिश हुई थी जिसकी वजह से १५ अगस्त को मौसम काफी सुहावना था । हाँ थोड़ी-थोड़ी बूंदा-बादी हो रही थी पर उससे लोगों के जोश और उत्साह मे कोई कमी नहीं थी।क्यूंकि लो छाता लगाकर परेड देख रहे थे ।सुबह -सुबह ६ जब हम लोग उठे तो देखा सर्किट हाउस मे (हम अभी यही रह रहे है) बड़ी चहल-पहल दिखी और छोटे-छोटे बच्चे तैयार होकर इकठ्ठा हो रहे थे पूछने पर पता चला कि सभी बच्चे झंडा फहराने के लिए इकठ्ठा हो रहे है। तो सर्किट हाउस वालों से पूछने पर पता चला कि सात बजे झंडा फहराया जायेगा। बस फिर हम अपना कैमरा लेकर तैयार हो गए फोटो खींचने के लिए। और ठीक ७ बजे सर्किट हाउस के जे.इ.ने झंडा फहराया और सभी ने राष्ट्रीय गान भी गाया और उसके बाद जे.इ.ने एक छोटा सा भाषण भी दिया और फिर बच्चों को लड्डू और रसगुल्ले बांटे गए ।इसके बाद साढ़े आठ बजे हम लोग तैयार होकर इंदिरा गाँधी पार्क गए जहाँ स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए लोग जमा हो रहे थे । ठीक ९ बजे यहां के मुख्य मंत्री दोरजी खंडू समारोह स्थल पर आये और उन्होंने तिरंगा झंडा फहराया।फिर उन्होंने परेड का निरीक्षण कीया।परेड के निरीक्षण के समय डी.आई.जी.देओल भी उनके साथ थी और उसके बाद उन्होंने एक लम्बा सा भाषण दिया जिसमे उनकी सरकार क्या-क्या कर रही है उसके बारे मे बताया ।उसके बाद यहां के मुख्य सचिव तबम बाम ने उन लोगों के नाम पढ़े जिन्हें इस साल गोल्ड और सिल्वर मेडल दिए जाने थे।इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया
उसके बाद विभिन्न रेजिमेंट्स ने और स्कूल के बच्चों ने परेड की ।
जिसमे सबसे पहले यहां की tribes ने कुछ नृत्य प्रस्तुत किये और उसके बाद स्कूल के बच्चों ने कुछ बहुत ही खूबसूरत नृत्य प्रस्तुत किये जिसमे माँ तुझे सलाम ,मिले सुर मेरा तुम्हारा ,ऐ मेरे वतन के लोगों और जोधा अकबर के गीत थेइस फोटो मे नीले कपडे वाले सैनिकों के बीच मे जो बैठे है वो अकबर है। :)
तकरीबन डेढ़ घंटे तक ये समारोह चला और उसके बाद सबसे अच्छी परेड और सबसे अच्छे नृत्य को पुरस्कार दिया गया और इस फोटो मे मिले सुर मेरा तुम्हारा प्रस्तुत करने वाले बच्चे प्रथम पुरस्कार की अपनी ट्राफी के साथ जीत की ख़ुशी मनाते हुए दिखाई दे रहे है ,वैसे इनका विडियो हम you tube पर अपलोड करने वाले है । और बाकी सभी को पार्टीसीपेशन प्राइज दिया गया।


और इस तरह ६३वाँ स्वतंत्रता दिवस समारोह समपन्न हुआ ।

Friday, May 21, 2010

तवांग यात्रा (३) तवांग वार मेमोरिअल (tawang war memorial)

तवांग मे जैसे ही प्रवेश करते है तो हर तरफ भारतीय सेना के जवान ,सेना की कारें,ट्रक,वगैरा बहुत दिखाई देते है क्यूंकि तवांग चीन और भारत के बार्डर का डिस्ट्रिक्ट है। १९६२ मे जब चीन ने (sino-india war) भारत पर आक्रमण किया था और चीनी सैनिक भारत मे प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे उस समय तवांग मे तैनात भारतीय सैनिकों ने अपूर्व जौहर और हिम्मत से चीनी सैनिकों का सामना किया था और उन्हें भारत मे प्रवेश करने से रोका था।इस लड़ाई मे २४२० भारतीय सेना के जवान शहीद हो गए थे और इन्ही शहीदों की याद मे ये memorial बनाया गया है। ये memorial तवांग शहर से १ कि.मी.की दूरी पर है और यहां तक जाने मे रास्ते मे दोनों तरफ सेना के शिविर और सड़क के दोनों ओर बहुत सारे बोर्ड ,झंडे और मूर्तियाँ अलग-अलग रेजिमेंट के बहादुर सैनिकों की दिखाई देती है। और इस १ कि.मी.के रास्ते मे सेना के जवान आते-जाते हुए भी दिखाई देते है।
इस memorial का निर्माण १५ अगस्त १९९८ मे शुरू हुआ था और २ नवम्बर १९९९ को इसे उन २४२० शहीदों को समर्पित किया गया जिन्होंने चीनी सैनिकों से लड़ते हुए अपनी जान अपने देश पर कुर्बान कर दी थी। इस memorial की ख़ास बात ये है कि ये तवांग के तकरीबन पूरे शहर से दिखाई देता है।
जैसे ही इस war memorial के गेट से प्रवेश करते है तो दाहिनी ओर एक बोफोर्स तोप दिखाई पड़ती है और इसी के पास कार पार्किंग भी है। यहां से थोडा आगे बढ़ने पर भगवान बुद्ध की सफ़ेद मूर्ति बनी हुई है। यहां पर जैसे ही कार से उतरते है तो सामने सीढियां दिखाई देती है और इन सीढ़ियों के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर देखने पर यहां बना ४० फीट ऊँचा स्तूप दिखाई देता है ।

इस
war memorial मे बुद्ध धर्म की झलक साफ़ दिखाई पड़ती है -प्रवेश द्वार और ऊपर भी । सीढ़ियों से ऊपर जाने पर धर्म चक्र (monestary जैसे )दिखाई पड़ते है । यहां स्तूप के चारों ओर दीवारों पर उस युद्ध मे शहीद हुए सभी जवानों के नाम उनकी रेजिमेंट के साथ लिखे हुए है ।
इस war memorial मे ऊपर की तरफ भारतीय झंडे के साथ साथ सभी रेजिमेंट के झंडे लगे हुए है । रोज सुबह सूर्योदय के साथ इन्हें फहराया जाता है । और हर रोज शाम ५ बजे जब सूरज ढलने लगता है यानी सूर्यास्त के समय इन सभी झंडों को बिगुल की धुन के साथ उतारा जाता है और इसे देखना भी अपने आप मे एक अनुभव है।इसका विडियो you tube पर लगाया हुआ है ।


इस स्मारक के चारों पत्थर लगे हुए है जिनपर शहीदों के लिए लिखा हुआ है कि किस तरह उन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए देश के प्रति अपना फर्ज निभाया था।
थोडा और आगे बढ़ने पर एक कमरे मे सूबेदार जोगिन्दर सिंह जी की प्रतिमा बनी है जिसके नीचे एक रीथ रक्खा हुआ है और साथ ही वहां पर राइफल्स और शहीद हुए जवानों की अस्थियाँ भी रक्खी हुई है। दीवार पर मेड़ेल्स लगे हुए है और इस लड़ाई के बारे मे लिखा हुआ है। जोगिन्दर सिंह जी की मूर्ति के नीचे किस बहादुरी और अदम्य साहस के साथ उन्होंने चीनी सेना से लड़ाई की लिखा हुआ है और जिसे पढ़कर सिर अपने आप उनकी शान मे झुक जाता है।यहां से आगे बढ़ने पर एक और कमरा पड़ता है जिसमे उस समय इस्तेमाल की गयी राइफल्स और गोलियां रक्खी है। और यहां पर दीवारों मे उस समय लड़ाई की फोटो लगी हुई है। साथ ही एक नक्शा भी लगा हुआ है। जिसके माध्यम से उस समय जैसे-जैसे लड़ाई आगे बढ़ी थी उसे दर्शाया गया है। जिसे पढ़कर और देख कर अपने देश के लिए जान कुबान करने वाले शहीदों पर नाज होता है ।

war memorial से बाहर आने पर बायीं ओर गिफ्ट शॉप पड़ती है जहाँ से हम लोगों ने इस war memorial के सोविनियर खरीदे। और वापिस गेस्ट हाउस आ गए।