Saturday, April 30, 2011

नाम्दाफा इको-कल्चरल फेस्टिवल फैशन शो

उदघाटन समारोह के बाद शाम को हम लोग एक बार फिर से फेस्टिवल ग्राउंड गए जहाँ बजे से फैशन शो होना था। इस फेस्टिवल मे दिन और तरह का फैशन शो हुआ पहले दिन पारंपरिक (traditional ) और दूसरे दिन आधुनिक(modern) इस फैशन शो की खासियत ये थी की एक जगह एक सा इतनी सारी tribes की पारंपरिक वेशभूषा को देखना इससे अच्छी भला और क्या बात हो सकती थी इस फैशन शो की ये युबिन tribeहै
और फैशन शो मे भी ना केवल यहां की tribes बल्कि यहां रहने वाले आसामी,गोरखा,आदिवासी आदि ने भी इसमें हिस्सा लिया।
फैशन शो देखने की उत्सुकता ज्यादा थी क्यूंकि दिल्ली मे तो फैशन शो देखे है पर यहां अरुणाचल मे ये पहला मौका था जहाँ traditional के साथ-साथ modern फैशन शो देखने को मिल रहा था। :) खैर हम लोग तो बजे पहुँच गए पर फैशन शो बजे शुरू हुआ उससे पहले सोलो डांस और ग्रुप डांस वगैरा होते रहे थे। और सभी ने बहुत ही अच्छा perform किया था।

खैर
एक घंटे के इस डांस कार्यक्रम के बाद फैशन शो शुरू हुआ और चूँकि पहले दिन पारंपरिक( traditional) फैशन शो था तो चांगलांग मे रहने वाली सभी tribes ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा मे ये शो किया और हर tribe के ट्रेडिशनल ड्रेस और इस शो को करने वाले models सभी बहुत traditional थे।

इस ट्रेडिशनल फैशन शो मे चांगलांग मे रहने वाली तकरीबन १७ tribes की पारंपरिक वेशभूषा देखने को मिली।जहाँ हर tribe की लड़कियों ने अलग-अलग तरह के गाले और ज्यूलरी पहनी थी वहीँ लड़कों ने अलग-अलग तरह की जैकट और कुछ ने बहुत ही अलग तरह के हेडगियर पहने थे। सभी की ड्रेस इतनी कलरफुल और आकर्षक थी कि बस क्या कहें।ये तागिन tribe है।

traditional फैशन शो मे म्यूजिक कुछ बहुत ही अलग सा पर बहुत ही अच्छा थोडा क्लासिकल था और इस शो को बहुत ही अच्छा कोरियोग्राफ किया गया था। पहले traditional फैशन शो को देखने के बाद modern फैशन शो देखने का भी तै हुआ। अरे भाई क्यूंकि traditional फैशन शो देख कर बहुत मजा जो आया था। और एक उत्सुकता भी थी की इनका modern फैशन शो कैसा होगा।

डेढ़ घंटे चले इस फैशन शो को देखने के बाद हम लोग वापिस लौट आये। और ये तय हुआ कि अगले दिन शाम को modern फैशन शो भी देखा जाएगा।

तो अगले दिन शाम को हम लोग फिर से फैशन शो देखने के लिए गए पर पहले दिन के अनुभव की वजह से थोडा देरी से गए पर माने बजे गए पर इस दिन भी फैशन शो एक घंटे देरी से शुरू हुआ। और जैसे ही फैशन शो शुरू हुआ तो बस देखते ही बनता था। modern फैशन शो मे चांगलांग की tribes के जो traditional कपडे होते है उन्हें इस ख़ूबसूरती से modern look दिया गया था कि देखते ही बनता था।

जिन कपड़ों से लोग गाले (wrap around) बनाते है जो कि इनकी traditional ड्रेस है उन्ही को बहुत ही ख़ूबसूरती से अलग-अलग तरह की dresses मे बनाया गया था। जो कि एक बहुत ही च्छा प्रयास था।

modern फैशन शो का म्यूजिक traditional से बिलकुल ही अलग था। जिस तरह कपडे और dresses अलग थे उसी तरह म्यूजिक भी अलग था। इस दिन पूरे शो के दौरान मइय्या - मइय्या गाना बजता रहा था जो इस शो के लिए बिलकुल परफेक्ट था। :)

और इस शो को भी बहुत ही अच्छा कोरियोग्राफ किया गया था। हाँ इस दिन models थोड़ी सी consious जरुर लग रही थी पर फिर भी उन लोगों ने इसे अच्छे से मैनेज किया। traditional के मुकाबले modern फैशन शो छोटा जरुर था पर अच्छा था।

Monday, April 4, 2011

हमारी फूलों की बगिया .....


अरे
हम कोई गाना नहीं सुनवाने जा रहे है बल्कि हमने सोचा की क्यूँ ना आज आप लोगों को अपने बगीचे की कुछ सैर करवा दी जाए अब आप लोग कहेंगे कि अब तो फूलों का मौसम कुछ ख़त्म हो रहा है और हम अब फूलों की बात कर रहे है। तो वो क्या है कि हम घर मे नवम्बर मे शिफ्ट हुए थे और घर मे शिफ्ट होने के बाद ही फूलों के पौधे लगाए थे तो जाहिर सी बात है कि जब पौधे देर से लगाए थे तो फूल भी देर से ही आने थे। :)



और फिर हमारे carrey (doggi)से भी तो पौधों को बचना होता है क्यूंकि जब carrey दौड़ते है तो उसके पैरों से कुछ पौधे दब जाते थे। और हम लोग रोज गिनते थे कि कितने पौधे बचे।


ना केवल पौधे बल्कि जब फूल खिल गए तब भी यही हाल है रो देखते है कि आज कौन सा फूल टूटा या बचा।

काफी समय बाद अपनी बगिया मे - रंग के हमने गेंदे के फूल जिसमे सफ़ेद गेंदे का फूल भी है
गेंदे के फूल वो चाहे हजारा हो या फिर माला मे पिरोये जाने वाले छोटे -छोटे पीले और कुछ लाल से फूल ही क्यूँ ना हो सभी खूब खिले

औए डहेलिया के इतने सारे रंग देखे कि क्या कहें। ही पेड़ मे अलग-रंग के डहेलिया देखकर मन खुश हो जाता है।

वेर्बिना और जीनिया की तो बात ही क्या

पेंजी और पिटुनिया के खूबसूरत फूलों का तो कोई जोड़ ही नहीं

वहीँ गजानिया और सालविया भी कुछ कम नहीं । गजानिया भी सूरजमुखी की तरह ही है ये भी सूरज की रौशनी पड़ने पर यानी धूप मे ही खिलता है और जिस दिन बारिश होती है उस दिन ये फूल नहीं खिलता है।

वैसे हमारे घर मे ऑर्किड भी धीरे-धीरे खिल रहे है अब अरुणाचल मे रहे और ऑर्किड घर मे ना ना लगाए ये तो कोई बात नहीं।

वैसे आपको बता दे यहां पर ऑर्किड की जितनी वैराइटी मिलती है उतनी कहीं और नहीं मिलती है।इंडिया मे मिलने वाली तकरीबन साढ़े ग्यारह सौ वैराईटी मे से ६०० तरह के ऑर्किड यहां अरुणाचल मे ही मिलते है। और ऑर्किड के खिलने का समय फरवरी से लेकर मई-जून तक रहता है जब ऑर्किड लगाए तब पता ला कि जहाँ कुछ ऑर्किड मिटटी मे लगाए जाते है तो कुछ सिर्फ कोयला,पत्थर और बालू भरे गमलों मे लगाए जाते है।






जहाँ कुछ ऑर्किड सिर्फ हवा (air orchid) से ही अपना पोषण लेते है। तो वहीँ कुछ ऑर्किड पेड़ों से ही अपना पोषण लेते है।

तो कहिये हमारे बगीचे की सैर कैसी रही।:)