Thursday, September 9, 2010

Tak-Tsang Monastery यानि टी गुम्पा (तवांग ५ )

जैसा की हमने अपनी पिछली पोस्ट फ्रोजन लेक्स मे कहा था तो चलिए आज माधुरी लेक से आगे चलते है यानी टी .गुम्पा चलते है। माधुरी लेक से बस ५ की.मी.की दूरी पर ये छोटी सी Monastery है और ये Monastery बिलकुल पहाड़ के एक कोने पर बनी है। इस Monastery को Tak-Tsang या Tiger's Den भी कहा जाता है क्यूंकि यहां के लोगों का कहना है कि यहां पर जब इनके गुरु पदमासंभव आये थे तो एक टाइगर ने उनका स्वागत किया था और ये भी माना जाता है कि बहुत समय तक वहां पर टाइगर आते थे हालाँकि अब वहां टाइगर नहीं आते है। :)यहां तक जाने का रास्ता उबड़-खाबड़ तो जरुर था पर जल्दी ही इस रास्ते से होते हुए हम लोग इस टी.गुम्पा पर पहुँच गए। यहां पहुँचते ही चारों ओर से जोर-जोर से हवा की आवाज बिलकुल फ़िल्मी स्टाइल मे सुनाई देने लगी और चारों ओर लगे झंडे फडफडाते हुए खूब जोर-जोर से हवा मे झूमते हुए हिल रहे थे।और जैसा की इन झंडों के लिए कहा जाता है कि ये वातावरण को शुद्ध करते है उस बात को बिलकुल सही साबित कर रहे थे। और इस हवा की वजह से हम सबका ठण्ड के मारे बुरा हाल था जबकि टोपी और जैकट से हम सभी पूरी तरह से लैस थे ,और धूप भी काफी थी
गाडी से उतर कर एक खूबसूरत से गेट से हम लोग अन्दर दाखिल हुए तो सामने ही एक छोटी पर सुन्दर सी Monastery दिखाई दी। और तभी वहां के लामा अपने घर से निकलकर बाहर आये और हम लोगों ने लामा से मुलाकात कर उनसे इस गुम्पा के बारे मे जानकारी चाही। तो उन्होंने सबसे पहले मुख्या प्रार्थना भवन के बायीं ओर के पेड़ को दिखा कर बताया कि ऐसा कहा जाता है कि जब गुरु पदमासंभव यहां आये थे तो उन्होंने इसी पेड़ के नीचे आराम किया था और अपने घोड़े को इसी पेड़ से बाँधा था और अब इस पेड़ को बहुत ही auspicious माना जाता है ।जैसा कि आप इन झंडो को देख कर समझ सकते है। वहां आस-पास २-४ घर दिख रहे थे और Monastery के साथ ही लामा का घर बना हुआ था जहाँ लामा जी अकेले ही रहते है। और बातचीत मे जब उन्होंने इसे टाइगर डेन कहे जाने की बात कही तो अनायास ही हमने उनसे पूछ लिया की क्या आपको रात मे यहां अकेले डर नहीं लगता की कहीं टाइगर ना जाए तो वो बोले कि नहीं डर नहीं लगता है क्यूंकि अब टाइगर क्या रात मे तो इंसान भी नहीं आते है। वैसे दिन मे भी दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आता है। :)
इस गुम्पा मे प्रवेश करने के पहले हम लोगों ने जूते उतारे और अन्दर प्रवेश किया तो सामने पदमासंभव की सुनहरी प्रतिमा दिखाई दी और इस प्रतिमा के चारों ओर भगवान बुद्ध के विभिन्न रूप दिखाई दिए और इस प्रतिमा के नीचे का बड़ा दीपक जल रहा था और साथ ही स्टील की छोटी-छोटी कटोरी मे पानी रक्खा था ।यहां पर भी हम लोगों ने सफ़ेद khoda चढ़ाया और जैसे ही इस प्रतिमा के दर्शन करके आगे बढ़ते है तो बायीं ओर दलाई लामा की फोटो नजर आती है।और यहां भी फोटो के नीचे छोटी-छोटी कटोरी मे पानी रक्खा था तो जिज्ञासा वश हमने लामा से पूछा कि इन कटोरियों मे पानी रक्खने का कोई ख़ास कारण है तो इस पर लामा ने बड़ी सादगी से हमे बताया कि रोज सुबह सारी कटोरियों को साफ़ करके वो उनमे पानी भरते है और रोज शाम को सारी कटोरियों का पानी खाली करते है । और फिर हँसते हुए बोले कि भगवान की आराधना ही तो हमारा काम है।( तकरीबन ६०-७० कटोरियों मे पानी रक्खा था )

इस छोटी सी Monastery के अन्दर चक्कर लगा कर हम लोग बाहर आये और Monastery का बाहर से चक्कर लगाया और फोट-शोटो खींची । Monastery के गेट से सामने वाले पहाड़ पर देखने पर पहाड़ की ऊँची चोटी पर कुछ झंडे लगे दिखे पूछने पर पता चला कि वहां पर लोग ध्यान लगाने के लिए जाते है। वैसे अपनी तो वो ऊँची चढ़ाई देखकर ही हिम्मत जवाब दे गयी थी। :)
वहां
लामा से हम लोग बात कर ही रहे थे कि तभी ये दो छोटे से बच्चे आये । यहां के बच्चे बड़े ही जोशीले है । जब भी हम लोगों की गाडी कहीं से गुजरती और अगर वहां कुछ बच्चे होते तो बच्चे पूरे जोश से हाथ हिला-हिला कर wave करते । और कैमरा देख कर तो बच्चे बहुत खुश होते है ।और झट फोटो के लिए pose दे देते है। :)