Wednesday, March 31, 2010

श्री सिद्धेश्वर नाथ मंदिर --जीरो २ (ziro)


जैसा की हमने अपनी पिछली पोस्ट मे कहा था तो चलिए आज एक बार फिर जीरो के बारे मे कुछ बातें बताते है। जीरो के गेस्ट हाउस से करीब ४-५ की.मी. की दूरी पर ये शिव मंदिर स्थित है। जीरो मे सभी लोगों ने हमें इस मंदिर को जरुर देखने के लिए कहा क्यूंकि यहां पर जो शिव लिंग है वो कुदरती है (natural) इस शिव लिंग के लिए कहा जाता है कि जंगल मे कुछ लोग पेड़ काटने गए थे तो जब वो लोग एक पहाड़ के पेड़ काटने लगे तो जिस तरफ पेड़ गिरा वहां से ये शिव लिंग प्रकट हुआ । और इस शिव लिंग के उंचाई २५ फीट और चौड़ाई २२ फीट है। और विश्व का ये सबसे बड़ा और विशाल शिव लिंग है। और यहां के लोकल एम. एल. ए. ने इस मंदिर का नाम श्री सिद्धेश्वर नाथ मंदिर रक्खा है । अब ये भी था कि जब आये है तो मंदिर तो देखने जायेंगे ही।और फिर ऐसा नेचुरल शिव लिंग देखने का मौका कैसे छोड़ सकते थे

अब चूँकि ईटानगर से जीरो का रास्ता हम देख चुके थे तो इसलिए पूछा कि रास्ता कैसा है तो सबने कहा कि ठीक है और बस १० मिनट लगते है पहुँचने मे । और मंदिर तक जाने के लिए सी सी यानी सीढियां भी बनी हुई है। तो अगले दिन सुबह मंदिर जाने का कार्यक्रम बना और सुबह जब हम लोग चले तो बस २ मिनट बाद ही मिटटी वाली सड़क शुरू हो गयी तो ड्राईवर ने बताया कि ये सड़क अभी कुछ समय से बनना शुरू हुई है वरना लोग खेतों और पहाड़ों से होते हुए पैदल ही मंदिर तक जाते थे । और २-३ घंटे मे पहुँच जाते थे । पर अब तो इस सड़क के बनने से मंदिर तक जाना आसान हो गया है। और हम लोगों की गाड़ी इठलाती बल खाती मिटटी और धूल उड़ाती हुई चलती रही। :)
और १५ मिनट बाद एक जगह जाकर ड्राईवर ने गाड़ी रोक दी क्यूंकि वहां से आगे का रास्ता बंद था । तो उतर कर देखा गया कि गाड़ी जाने का रास्ता तो था नहीं पैदल के लिए भी कम से कम एक कि .मी.की चढ़ाई थी।ऐसा उन लोगों का कहना था । और चूँकि कोई और option नहीं था और साथ गए हुए लोगों ने कहा की भोले नाथ का नाम लेकर चल पड़िए । इसलिए हम लोग पैदल चलने लगे तो दूसरी तरफ थोड़ी दूर (एक पहाड़ ) पर २-४ लोग सीढ़ी से जाते हुए नजर आये । तो साथ वाले लोगों ने कहा की आगे हम लोग भी इन्ही सीढयों के पास पहुँच जायेंगे। करीबन आधे की.मी. की चढ़ाई के बाद एक पतली सी बस एक पैर ही रखने लायक पहाड़ी पगडण्डी की ओर इशारा करके वो लोग बोले कि यहां से शोर्ट कट है इसलिए जल्दी पहुँच जायेंगे तो अब हम लोग यहां से ही जायेंगे

वो रास्ता देख कर तो हमारी जान ही निकल गयी क्यूंकि जरा भी पैर फिसला तो गए । तो हमने कहा की नहीं हम लोग इसी पहाड़ी रास्ते से चलते है कम से कम रास्ता कच्चा और लम्बा है पर सड़क चौड़ी तो है। तो फिर से वो सब बोले की मैडम बस भोले नाथ का नाम लीजिये क्यूंकि जब बाबा ने बुलाया है तो वो मंदिर तक भी जरुर पहुंचाएंगे। और इस सड़क वाले रास्ते से समय ज्यादा लगेगा। हमारे ये कहने पर की आप लोग तो यहां के है और आप लोगों की आदत है पर हम लोग कैसे इस रास्ते से जायेंगे। तो वो बोले कि हम लोग है ना आप आराम से पहुँच जायेंगी। बस आप हिम्मत रखिये। तो हमने भी भगवान् का नाम लिया और उस पतली पगडण्डी पर चले तो एक कदम बाद ही लगा कि अब नहीं जा पायेंगे तो एक सज्जन ने हमारा हाथ पकड़ कर उस ऊँचे-नीचे से रास्ते को किसी तरह पार कराया और जब ५ मिनट बाद हम सीढ़ी पर पहुंचे तो जान मे जान आई।
सीढ़ी पर जाकर हमने कहा कि इसी सीढ़ी वाले रास्ते से हम लोग क्यूँ नहीं आये तो वो लोग कहने लगे कि ये ६३० सीढियां है और सीढ़ी चढ़ने मे ज्यादा परेशानी होती है।क्यूंकि सीढ़ी भी सीधी ही है। तो हमने कहा कि ठीक है पर अब चाहे जो हो हम उस पगडण्डी से नहीं बल्कि सीढ़ी से ही लौटेंगे ।

खैर वहां से से भी ५०-६० सीढियां मिली पहले बिलकुल नीचे जाती हुई और फिर बिलकुल ऊपर आती हुई। (पहाड़ के जैसी) और वहां से आगे बढ़ने पर घंटियों की आवाज सुनाई देने लगी थी और २ ही मिनट बाद हम लोग पहाड़ों के बीच बने शिव मंदिर के सामने थे। वहां पहुँच कर इतना विशाल शिव लिंग देख कर आश्चर्य भी हुआ।और शिव लिंग पर ये माला भी शुरू से है।साथ ही गणेश जी और पार्वती जी भी है।और ये भी नेचुरल ही है , किसी ने बनाया नहीं है उस दिन तो ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी पर लोगों ने बताया कि शिव रात्री मे यहां पर बहुत भीड़ होती है ।
मंदिर मे हमने पूजा करी और प्रसाद वगैरा चढ़ाया और फिर वापिस चल पड़े सीढ़ियों से । पर सीढ़ी से उतरना भी इतना आसान नहीं था क्यूंकि सीढ़ी के दोनों ओर कुछ भी सपोर्ट नहीं था । बस नीचे vally नजर आती थी।वैसे नजारा सुन्दर था । पर नीचे देख कर डर लगता था। इसलिए ज्यादा इधर-उधर देखे बिना सीढियां उतरते रहे । और फिर बिलकुल नीचे आकर एक छोटी सी दुकान पर चाय पी और फिर गाड़ी तक पहुंचे और उसी मिट्टी वाले रास्ते पर चल पड़े। :)





Saturday, March 27, 2010

जीरो (१) (ZIRO)


ziro नाम कुछ अलग सा है ना ।अरुणाचल आने के बाद जीरो वो पहला डिस्ट्रिक्ट है जहाँ हम घूमने गए थे। वैसे जीरो अरुणाचल प्रदेश का एक डिस्ट्रिक्ट है जो ईटानगर से तकरीबन १६७ कि.मी की दूरी पर है। जीरो जाने के दो रूट है एक तो अरुणाचल से ही जाते है जो छोटा रास्ता है और १६७ की.मी. की दूरी ४ घंटे मे कवर करते है और दूसरे रूट मे आसाम से होकर जाते है जिसमे ७ घंटे लगते है ।जीरो जहाँ पर टेम्प्रेचर जीरो डिग्री तक चला जाता है ऐसा लोग कहते है ।और जब टेम्प्रेचर जीरो होगा तो जाहिर सी बात है कि दिन मे भी हाथ-पैर गलने लगते है । इतनी ज्यादा ठण्ड होती है कि स्वेटर और जैकेट के बावजूद जाड़ा लगता रहता है ।पर वहां रहने वालों को देख कर ऐसा नहीं लगता है । सुबह तो पेड़ पौधों पर बर्फ जमी हुई दिखाई देती है ।जब हम लोगों ने जाने का प्लान किया तो लोगों ने सलाह दी की खूब गरम कपडे ले जाना क्यूंकि वहां ठण्ड बहुत होती है ।फोटो पर अगर आप क्लिक करेंगे तो फोटो बड़ी हो जायेगी।

खैर हम लोगों ने जीरो जाने के लिए छोटा वाला रास्ता चुना पर जैसे ही ईटानगर क्रॉस करके दोइमुख से जरा आगे बढे कि बस पथरीली सड़क शुरू हो गयी । और ऐसा पथरीला खड़ बढ़हिया रास्ता शुरू हुआ कि शरीर का अंजर-पंजर हिल गया । इस रास्ते पर जाते हुए कई बार दूर से जिस पहाड़ देख कर डर लगता था कि वो कभी भी सड़क पर लैंड स्लाइड कर सकता है कुछ देर बाद हम लोगों की कार उसी पहाड़ से गुजरती थी । और जान बिलकुल हलक मे अटकी रहती थी । हालाँकि ड्राइवर का कहना था कि ये बहुत ही चलता हुआ रास्ता है और बस कुछ दूर बाद सड़क ठीक है ।और तकरीबन डेढ़ से दो घंटे ऐसे ही पथरीले और पहाड़ी पर चलते हुए जब पूसा ४ की.मी रह गया वहां से सड़क अच्छी मिली । क्यूंकि वहां से BRO यानी बोर्डर रोड ऑर्गनाईजेशन ने सड़क बनाई हुई है ।वैसे रास्ता भयानक जरुर है पर रास्ते मे पहाड़ और हरियाली देखते बनती है ।

हालाँकि जनवरी को सीजन मानते है पर उस समय कुछ ज्यादा फूल वगैरा दिखाई नहीं देते है ठण्ड और बर्फ की वजह से जैसे ही हपोली पहुंचे की मौसम एकदम से बदल गयाऔर जब गेस्ट हॉउस हम लोग पहुंचे तो जैसे ही अपने कमरे मे गए तो लगा कि हाथ कि उगलियाँ बिलकुल सुन्न सी हो गयी जबकि कमरे मे एक नहीं दो-दो हीटर चल रहे थे और हम गरम कपड़ों से लैस थे।खैर थोड़ी देर बाद हम भी settle हो गए थे।:)चूँकि जीरो मे ठण्ड बहुत पड़ती है इसलिए यहां के सभी घरों मे इस तरह से आग जलाने का इंतजाम दिखता है। इसमें घर के बीच मे एक चौकोर सी जगह मे नीचे इस तरह से बीच मे लोहे की अंगीठी जैसी रखते है जिसमे एक तरफ गोल सा बना रहता है जिस पर बर्तन मे पानी हमेशा उबलता रहता है जिससे धुँआ ऊपर निकलता रहे । और जो बांस है ये बिलकुल काले लोहे के जैसे हो जाते है। और इन्ही काले बांसों के ऊपर कच्ची लकड़ियों को इस तरह बाँध कर लटकाए रहते है जिससे वो सूखती रहती है और बाद मे इन्ही लकड़ियों को आग जलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । और इतना ही नहीं इसमें चिकेन वगैरा भी भूनते है। (roast)
चलिए जीरो के बारे मे भी कुछ बता देते है। जीरो के लोगों का ये कहना था की पहले जीरो को ही अरुणाचल प्रदेश की राजधानी बनाने के लिए सोचा गया था। पर बाद मे ईटानगर को राजधानी बनाया गया ।यहां की जनसंख्या करीब ५० हजार है और यहां पर स्कूल बहुत ज्यादा तकरीबन १०० के आस-पास है। पूरे अरुणाचल मे जीरो मे लिटरेसी रेट काफी ज्यादा है ऐसा यहां के लोग कहते है। यूँ तो जीरो मे दूसरी tribes भी रहती है पर यहां की मुख्य tribe का नाम अपातीनी (Apatini) है।जिनके लिए कहा जाता है कि ये अपनी जगह से कभी भी कहीं और नहीं जाते है। ।जीरो मे हरेक महिला अपनी पीठ पर टोकरी (ये टोकरी भी कई तरह कि होती है ) लेकर चलती हुई देखी जा सकती है ठीक उसी तरह जिस तरह हम लोग शॉपिंग बैग लेकर चलते है । फिर वो चाहे स्कूटर पर जा रही हो या पैदल चल रही हो ।



जीरो के लिए एक किस्सा बहुत मशहूर है । बात ५० के दशक की है । उस समय के प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु जी अपनी बेटी इंदिरा गाँधी के साथ नेफा के दौरे पर आये थे। और जब वो जीरो गए तो वहां के अपातीनी tribe के मुखिया padi Lailang ने नेहरु जी के ये पूछने पर की उन्हें क्या चाहिए । तो padi Lailang ने जिनकी उस समय कई बीबियाँ थी तब भी उन्होंने नेहरु जी के साथ आये एक अफसर जिसे उनकी भाषा आती थी उससे कहा की नेहरु जी को कितने मिथुन चाहिए इंदिरा जी की शादी उनसे कराने के लिएक्यूंकि ज्यादा मिथुन और बीबियाँ होना status symbol माना जाता था । ये सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग हंस पड़े ।और padi lailang समझ नहीं पाए कि आखिर उन्होंने गलत क्या कहा। और ये किस्सा हम लोगों को padi Lailang के बेटे ने ही सुनाया है ।

आज पोस्ट बहुत लम्बी हो गयी है इसलिए बाकी अगली पोस्ट मे । :)

Tuesday, March 23, 2010

गंगा लेक (ganga lake)

गंगा लेक यहां का एक पिकनिक स्पॉट माना जाता है। ईटानगर से तकरीबन १० -११ कि.मी.की दूरी पर ये गंगा लेक है । तो एक शनिवार को हम लोगों ने यहां जाने का कार्यक्रम बनाया । बस फिर क्या था ड्राईवर को बुलाया गया और चल पड़े गंगा लेक देखने। करीब १५ -२० मिनट की ड्राईव के बाद जब ड्राईवर ने गाडी रोकी तो हमें कुछ अजीएब सा लगा क्यूंकि वहां कुछ गाड़ियाँ तो खड़ी थी पर लेक हमें दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही थी। तो हमने ड्राईवर से पूछा कि लेक कहाँ है तो उसने ऊपर कम से कम चार मंजिल जितनी उंचाई की ओर जाती हुई सीढ़ियों की तरफ इशारा करके कहा कि लेक उधर ऊपर है। तो हमें आश्चर्य भी हुआ की लेक ऊपर कैसे है
खैर अब जब गए थे तो लेक तो देखना ही था। सो हम बिना कुछ सोचे गाडी से उतर कर जैसे ही चलने लगे की किसी ने आवाज लगाई टिकेट तो ले लीजिये। जब हम मुड़े तो ड्राईवर ने बताया की टिकेट भी लेना होता है और ये आवाज टिकेट काउंटर वाले ने लगाईं है।तो हमने उससे पूछ कि लेक पर जाने के लिए भी टिकेट लगता है क्या । तो उसने बड़ी ही सादगी से कहा कि अगर टिकेट नहीं होगा तो revenue कहाँ से आएगा। तो टिकेट हमने लिए और चल पड़े सीढ़ियों की ओर ।सीढ़ी पर जाने से पहले हमने सोचा की कुछ पानी वगैरा ले लिया जाए तो पता चला की वहां पर कुछ भी नहीं मिलता है । सब लोग अपने साथ ही खाना -पीना लेकर आते है।अब चूँकि और कोई चारा था नहीं सो हम लोग सीढ़ी की ओर बढे और धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़ना शुरू किया । धीरे-धीरे इसलिए चल रहे थे क्यूंकि जल्दी-जल्दी चढ़ने से थकान भी होने लग जाती । तो ५०-६० सीढियां चढ़ने के बाद जब ऊपर पहुंचे तो नीचे गंगा लेक दिखाई दी।तो हम लोग खुश हो गए कि चलो पहुँच गए पर नहीं लेक तक जाने के लिए भी सीढ़ी जा रही थी। माने लेक तक जाने के लिए फिर से सीढ़ियों से उतरना था। और लेक तक जाने के लिए दोनों तरफ से सीढियां जा रही थी ।तो हम लोग ने बायीं तरफ जाने वाली सीढियां ली क्यूंकि उस तरफ दूर कुछ मेज-कुर्सियां लगी दिख रही थी और जो ओपन एयर रेस्तौरेंट जैसा लग रहा था और वहां कुछ लोग भी दिख रहे थे ।तो हम लोगों ने ये सोच कर की बस कुछ दूर ही होगा चलना शुरू किया पर सीढियां ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी बस एक अच्छी बात थी कि सीढियां बहुत अच्छी थी मतलब बहुत ऊँची-ऊँची नहीं थी । इसलिए चलने मे ज्यादा कष्ट नहीं हो रहा था। और चूँकि हरियाली और बांस के पेड़ हर तरफ नजर आ रहे थे और रास्ते मे इन पेड़ों की वजह से छाँव भी थी।और नीचे लेक का पानी दिख रहा था । पर लेक तक पहुँचने का रास्ता नहीं दिख रहा था ।सो हम लोग चलते रहे और तकरीबन २०-२५ मिनट तक चलने के बाद जब हम लोग उस रेस्तौरेंट के पास पहुंचे तो देखा कि वहां का गेट मोटे-मोटे बांस से बंद कर रक्खा था । जगह तो अच्छी थी पर गेट बंद होने के कारण वहां तक जाना एक तरह से बेकार ही होगया था ।इसलिए बस कुछ फोटो खींच कर वापिस चल पड़े क्यूंकि प्यास भी लग रही थी और वहां तो कुछ मिलता भी नहीं था । :(
वैसे वहां कोई boat वगैरा भी नहीं दिखाई दे रही थी । सिवाय इस boat के ।
बाद मे पता चला की दूसरा वाला रास्ता भी उस रेस्तौरेंट की तरफ जाता था क्यूंकि जो लोग दाहिनी ओर वाली सीढ़ी से गए थे वो भी उस उस रेस्तौरेंट के पास हम लोगों को मिले थे । वैसे अगर गंगा लेक का पूरा चक्कर लगाए तो ४० मिनट से एक घंटा लगता है

खैर वहां कुछ समय बिता कर हम लोग वापिस चल पड़े। और इस ट्रिप से ये सबक लिया कि अब जब कहीं भी जायेंगे तो कुछ खाना -पीना अपने साथ लेकर ही जायेंगे। :)






Tuesday, March 16, 2010

लैंड ऑफ राइजिंग सन ( land of rising sun )

अरुणाचल प्रदेश जिसे land of rising sun कहते है ये तो अब आप जानते ही है । यूँ तो अरुणाचल प्रदेश सुनकर लगता है की ये भी उत्तर पूर्व (N E ) का एक छोटा सा राज्य होगा पर ऐसा नहीं है अरुणाचल प्रदेश काफी बड़ा है। हाँ पर जनसँख्या यहां की काफी कम है (शायद 1० -११ लाख )। पर उस हिसाब से यहां गाड़ियों की संख्या बहुत ज्यादा है। :)जो भी जरा वेल ऑफ है उसके घर मे ३-४ गाड़ियाँ तक देखी जा सकती है।( ये फोटो इस बार हेलिकॉप्टर से आते हुए खींची थी । )
अरुणाचल प्रदेश राज्य बनने से पहले Union Territory था । और इससे पहले ये नेफा (NEFA)north eastern frontier agency के नाम से जाना जाता था और आसाम के कण्ट्रोल मे था पर 2 जनवरी १९७२ मे इंदिरा गाँधी ने जीरो मे ही नेफा को अरुणाचल प्रदेश नाम से union territory के रूप मे शामिल किया था । और २० फरवरी १९८७ मे राजीव गाँधी द्वारा अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया गया था और बी दास शास्त्री ने अरुणाचल प्रदेश का नाम सुझाया था । और तब से नेफा को अरुणाचल प्रदेश के नाम से जाना जाता है ।पहले शिलोंग अरुणाचल प्रदेश की राजधानी थी पर बाद मे जून १९७४ मे ईटानगर को अरुणाचल प्रदेश की राजधानी बनाया गया । ईटानगर शब्द के लिए कहा जाता है की ये नाम ईटानगर फोर्ट से बना है और ये किला (फोर्ट ) ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । खैर ईटानगर फोर्ट फोर्ट के बारे मे फिर लिखेंगे । और हाँ एक बात और यहां पर किसके पास कितने मिथुन और कितनी बीबियाँ है इस बात से व्यक्ति की हैसियत का अंदाजा लगाया जाता था माने वो आदमी कितना अमीर है। वैसे मिथुन यहां का state animal है।
अरुणाचल प्रदेश की सीमा जहाँ २ तरफ से चीन ,एक तरफ से मयनमार ,आसाम और नागालैंड को छूती है । अरुणाचल मे कुल मिलकर १६ जिले -- जैसे तवांग,वेस्ट कमांग,ईस्ट कमांग,वेस्ट सीअंग,ईस्ट सीअंग,अप्पर सीअंग,अप्पर सुबानसिरी,लोअर सुबानसिरी,पापुम पारे,कुरुंग कुमे,लोहित,अन्जो ,चांगलांग,तिरप,दिबंग वैली और लोअर दिबंग वैली है

तकरीबन २२ मुख्य tribes जैसे
अदिस (Adis),इदु मिश्मी (Idu मिश्मी),मेम्बा Memba,सिंग्फोस (Singphos),खावा (Khawa),अहास (Ahas),खाम्प्टी ( Khamptis),वान्चो (wancho),गालो (Galo),बोरी बोकर( Bori बोकर),अपातानी (Apatanis),तंगास (Tangas),तागिन (Tagin),दिगारू मिश्मी ( Digaru Mishmi,)नोकते,(Nocte),मोनपा (Monpas),खाम्बा (Khamba),मिजी( मिजी),ज़करिंग( Zhakrings),शेर्दुकपन (Sherdukpen),और निशि (Nyishi). और बहुत सारी sub tribes है।

यहां पर monastery बहुत है।और सबसे पुरानी तवांग monastery है। और साथ ही साथ यहां पर २ नेशनल पार्क और 8 वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरीहै जहाँ विभिन्न प्रकार के वन्य जीव देखे जा सकते है।

आम तौर पर ईटानगर का मौसम काफी अच्छा रहता है पर कभी -कभी देखते ही देखते बादल छा जाते है कोहरा इतना घना हो जाता है की थोड़ी दूर तक ही दिखाई देता है । वैसे आजकल गर्मी पड़ रही है। और एक बात यहां पर भी २ घंटे का समय आगे -पीछे है। शाम ५ साढ़े ५ बजे अँधेरा हो जाता है और सुबह जल्दी हो जाती है। और इसलिए ईटानगर मे शाम साढ़े ७ बजे के बाद ना केवल दुकाने बल्कि होटल वगैरा भी बंद हो जाते है । और ८ बजे तो बस सन्नाटा सा छा जाता है। :( :)

Sunday, March 14, 2010

एक नया ब्लॉग

आज से हम इस नए ब्लॉग की शुरुआत कर रहे है अरुणाचल प्रदेश की वादियों से के नाम से क्यूंकि अरुणाचल मे इतना कुछ है लिखने के लिए कि इसके लिए एक अलग ब्लॉग होना ही अच्छा है । आशा करते है कि mamta tv की तरह आप लोग इस ब्लॉग को भी पढ़ते रहेंगे ।