Monday, May 16, 2011

नाम्दाफा नॅशनल पार्क

नाम्दाफा इको-कल्चरल फेस्टिवल देखने के बाद सोचा गया कि जब इतनी दूर ये है तो नाम्दाफा नॅशनल पार्क भी देख लेना चाहिए क्यूंकि नाम्दाफा म्याऊं से सिर्फ २८-३० कि.मी. की दूरी पर है। नाम्दाफा नॅशनल पार्क तक पहुँचने के रास्ते है एक तो म्याऊं से दूसरा रास्ता namsai से होते हुए deban से और तीसरा रास्ता विजयनगर से गांधीग्राम होते हुए जाया जा सकता है

चलिए कुछ नाम्दाफा के बारे मे भी तो बता दिया जाए। नाम्दाफा अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग डिस्ट्रिक्ट मे है। नाम्दाफा एक नदी का नाम है जो dapha -bum (dapha एक tribe के नाम का पहाड़ है और bum का मतलब है पहाड़ की छोटी) से निकलती है। और शिन्ग्पो भाषा मे nam का मतलब है पानी नाम्दाफा को १९७२ मे wild life sanctuary घोषित किया गया था और १९८३ मे इसे नॅशनल पार्क और tigar reserve घोषित किया गया ये दुनिया का अकेला ऐसा पार्क है जहाँ tiger,leopard,clouded leopard,और snow leopard मिलते है। और नाम्दाफा hornbill bird जो की यहां की राजकीय पक्षी है बहुत होती है।

इनके अलावा यहां तकरीबन - तरह की leech (जोंक) ३०० से भी ज्यादा तरह की तितलियाँ ,अनेकों प्रकार के insects,मछलियां,६५० प्रकार की चिड़ियाँ,और अनेकों तरह के जीव-जंतु (जैसे
सांप,बार्किंग डीयर ,हिरन,वगैरा ) लिस्ट बहुत लम्बी है :)


सो अगले दिन सुबह बजे हम लोग नाम्दाफा के लिए निकले। नाम्दाफा जाने के लिए four wheel drive वाली गाड़ियाँ ही जाती है क्यूंकि छोटी कार वगैरा जा ही नहीं सकती है क्यूंकि जैसे ही म्याऊं से बाहर आते है तो बस पथरीली और उबड़-खाबड़ सड़क शुरू हो जाती है। जो काफी दूर तक चलती है और जहाँ से ये सड़क ख़त्म होती है वहां से कच्ची सड़क शुरू हो जाती है। यानी अभी पक्की सड़क बनी नहीं है बनाई जा रही है। सारे रास्ते कहीं-कहीं पर कुछ - मजदूर काम करते हुए दिख जाते है तो कहीं औरतें गाले (लोकल ड्रेस) बनाती दिख जाती है।

कहीं-कहीं सड़क इतनी पतली है कि एक बार मे गाड़ियाँ क्रॉस करने मे दिक्कत आती है। और सारी सड़क गीली रहती है जिसकी वजह से कीचड सा रहता है और जिसमे गाडी के फंसने का डर भी रहता है वैसे घने जंगलों से गुजरते हुए विभिन्न तरह की चिड़ियों और पक्षियों की आवाज के साथ और नीचे बहती नदी को देखते हुए कीचड भरा रास्ता भी पार हो जाता है :)



इस एक-डेढ़ घंटे की ड्राइव के बाद जब गेस्ट हाउस पहुँचते है तो जरा जान मे जान आती है। यहां गेस्ट हाउस के अलावा कुछ टूरिस्ट हट्स और डॉरमेटरी भी है हम लोग नाम्दाफा मे फ़ॉरेस्ट का गेस्ट हाउस है जो की बहुत ही सुन्दर है वहां ठहरे थे और ये जगह ऐसी है कि यहां आराम से - दिन रहा जा सकता है ,गेस्ट हाउस के चारों और खूबसूरत लॉन और सामने sea bed और दूर दीखते जंगल और पहाड़ इंसान को और क्या चाहिए ।यहां पूरी तरह से प्रकृति को enjoy किया जा सकता है। क्यूंकि यहां ज्यादातर लाईट नहीं होती है इसलिए solar energy का इस्तेमाल होता है। और वहां ना तो t.v. है और ना कोई मोबाइल फ़ोन काम करते है। इसलिए पूरी तरह से अगर कोई चाहे तो आत्मचिंतन भी कर सकता है :) पर इसमें एक खतरा भी है खुदा ना खास्ता कुछ हो जाए तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। :(इस फोटो मे जो दाहिनी ओर पहाड़ दिख रहा है वहीँ से hornbill कैंप जाते है। वैसे ये फोटो काफी ज़ूम करके ली है

जब हम लोग गेस्ट हाउस के गेट पर पहुंचे तो देखा हाथियों पर सामान वगैरा लाद कर एक साहब hornbill कैंप जो की गेस्ट हाउस से ११ कि.मी. की दूरी पर है जाने को तैयार थे। उनसे पूछने पर पता चला कि वो मैसूर से hornbill पर study करने आये थे इसलिए अगले - महीने वहीँ कैंप करेंगे ।और ये पूछने पर की अभी तो मौसम ठीक है (फरवरी मे गए थे) पर बारिश मे क्या होगा तो वो बोले की हम तो हां ऐसे ही - कर कैंप करते रहते है।

गेस्ट हाउस मे चाय वगैरा पीकर गेस्ट हाउस के एम्प्लोई से पूछने पर कि यहां कहाँ घूमें और क्या यहां hornbill दिखती है। तो एक बोले कि अभी एक घंटे पहले यहीं पेड़ पर बैठी थी। और हमारे पूछने पर कि क्या अक्सर hornbill आती है वोबोले कि कुछ ठीक नहीं है , कभी रोज आती है तो कभी नहीं। और घूमने के लिए उन्होंने कहा कि जंगल मे आप गाडी से थोड़ी दूर घूम आइये जहाँ रास्ता ठीक है ।वहीँ गेस्ट हाउस से एक आदमी (उनका नाम ठाकुर था)को साथ लिया ताकि जंगल मे भटक ना जाए

ड्राइवर को गाडी लाने के लिए बोल कर हम लोग गेस्ट हाउस से थोड़ी दूर पैदल चले कि लोग मिले जो कोलकत्ता से आये थे जो लेखकऔर फोटोग्राफर थे ,उनसे पूछने पर कि कुछ दिखा तो उन्होंने बताया कि कुछ चिड़ियाँ और लंगूर वगैरह दिखे। वो सभी लोग हाथों मे लकड़ी की लाठी पकडे हुए थे अरे भाई अगर कोई जानवर जाए तो उससे बचने के लिए। हम लोगों के साथ कैरी (doggi) को देखकर बोले की आप लोगों को डरने की कोई जरुरत नहीं ही क्यूंकि आपके साथ तो एक जानवर है ही सुरक्षा के लिए :)

तब तक ड्राइवर गाडी ले आया और हम लोग गाडी से चल दिए तकरीबन - कि.मी. जाने पर लगा कि गाडी मे बैठे-बैठे तो ना कुछ मजा रहा था और ना ही कुछ दिख रहा था। तो गाडी को हम लोगों ने रोका और सोचा कि अगर जंगल मे पैदल नहीं चलेंगे तो फायदा क्या आने का। और foot march शुरू किया :)

हालाँकि जिस रास्ते से हम लोग जा रहे थे वो बिलकुल कच्चा मिटटी और कीचड का रास्ता था क्यूंकि वहां पहाड़ इतने है कि कुछ जगहों पर धूप पड़ती ही नहीं है और ओस और पानी से अधिकतर रास्ता गीला -गीला ही रहता है। ।यूँ तो ये गाडी का रास्ता था मतलब मुख्य मार्ग था जो विजयनगर की ओर जाता था। . पर उस रास्ते पर कोई भी नहीं दीखता है. ना इंसान और ना ही जानवर हाँ कुछ खूबसूरत तितलियाँ जरुर दिखती है और कहीं बांस टूटने की आवाज तो कहीं से चिड़ियों की अलग-अलग तरह की आवाजें सुनाई देती रहती है. जो आपको जंगल मे होने का एहसास दिलाती रहती है।

खैर हम लोगों ने गाड़ी से उतर कर पैदल चलना शुरू किया ।जैसे ही हम लोग चलने लगे तो थोड़ी ही दूर कीचड़ वाला रास्ता दिखा तो ड्राइवर ने फटाक से बम्बू काटे और हम लोगों के लिए लाठी बना दी ताकि कीचड़ पार करने मे आसानी हो। हालाँकि उस दिन मौसम खुला था यानी धूप निकली हुई थी कैरी भी बड़े जोश मे चल रहे थे पर एक -डेढ़ घंटे चलने के बाद वही धूप थकाने वाली लगने लगी और कीचड को हर १० मिनट पर पार करते -करते बोर हो गए थे और कुछ ख़ास जानवर या पक्षी दिख भी नहीं रहा था। और फिर वापिस भी तो आना था। :)



लौटते हुए ये कुछ लोग दिखे तो ठाकुर ने बताया कि वो विजयनगर जा रहे है और miao से -१० दिन लगता है विजयनगर पहुँचने मे

वापिस लौटते हुए कैरी को झरने से पानी पिलाया और जैसे ही गाडी दिखी कैरी कूदकर उसमे बैठ गया लौटते हुए ठाकुर से हम लोगों ने पूछ की यहां कोई जानवर दीखता भी है तो वो बोले कि हाँ जब हम लोग जंगल मे राउंड करने जाते है २०-२५ दिन के लिए तब कहीं -कहीं tigar वगैरा दिखते है। थोड़ी देर बाद हम भी गाडी मे बैठ गए और हर पेड़ पर नजार गडाते हुए की शायद कहीं कोई hornbill दिख जाए। पर हमे एक भी नहीं दिखी हाँ बस कुछ तितलियाँ और जंगली कबूतर जरुर दिखे।

शाम को वहां जल्दी अँधेरा हो जाता है और किसी जानवर के बोलने की कुछ अजीब सी आवाज रही थी जिसे सुनकर कैरी ने जोर-जोर से भौकना शुरू कर दिया। और बस इधर से कैरी बोलता उधर से वो जानवर। बाद मे हम लोगों ने देखा की कुछ लोग torch लेकर गेस्ट हाउस के आस-पास जंगल मे कुछ देख रहे है तो उत्सुकता वश हम लोग भी torch लेकर निकले पर कुछ दिखा नहीं पर वो आवाज काफी पास से सुनाई देने लगी थी। लौटकर गेस्ट हाउस वाले ने बताया की वो बार्किंग डीयर की आवाज है।

सारी रात जानवरों की आवाजें ही आती रही रात मे भी कई बार बाहर अँधेरे मे देखने की कोशिश की क्यूंकि वहां फ्लाईंग इस्क्विरल भी दिखती है पर हमें कुछ भी नहीं दिखा। खैर अगले दि का कार्यक्रम बनाया कि हाथी से जंगल मे जाया जाये ताकि कुछ तो दिखे।:)

तो हाथी की सवारी अगली पोस्ट मे। :)

1 comment:

  1. आपने तो इस पार्क की भी सैर करा दी है,
    बम्बू की लाठी भी, चलो जी हाथी भी देखेगे,

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