ziro नाम कुछ अलग सा है ना ।अरुणाचल आने के बाद जीरो वो पहला डिस्ट्रिक्ट है जहाँ हम घूमने गए थे। वैसे जीरो अरुणाचल प्रदेश का एक डिस्ट्रिक्ट है जो ईटानगर से तकरीबन १६७ कि.मी की दूरी पर है। जीरो जाने के दो रूट है एक तो अरुणाचल से ही जाते है जो छोटा रास्ता है और १६७ की.मी. की दूरी ४ घंटे मे कवर करते है और दूसरे रूट मे आसाम से होकर जाते है जिसमे ७ घंटे लगते है ।जीरो जहाँ पर टेम्प्रेचर जीरो डिग्री तक चला जाता है ऐसा लोग कहते है ।और जब टेम्प्रेचर जीरो होगा तो जाहिर सी बात है कि दिन मे भी हाथ-पैर गलने लगते है । इतनी ज्यादा ठण्ड होती है कि स्वेटर और जैकेट के बावजूद जाड़ा लगता रहता है ।पर वहां रहने वालों को देख कर ऐसा नहीं लगता है । सुबह तो पेड़ पौधों पर बर्फ जमी हुई दिखाई देती है ।जब हम लोगों ने जाने का प्लान किया तो लोगों ने सलाह दी की खूब गरम कपडे ले जाना क्यूंकि वहां ठण्ड बहुत होती है ।फोटो पर अगर आप क्लिक करेंगे तो फोटो बड़ी हो जायेगी।
खैर हम लोगों ने जीरो जाने के लिए छोटा वाला रास्ता चुना पर जैसे ही ईटानगर क्रॉस करके दोइमुख से जरा आगे बढे कि बस पथरीली सड़क शुरू हो गयी । और ऐसा पथरीला खड़ बढ़हिया रास्ता शुरू हुआ कि शरीर का अंजर-पंजर हिल गया । इस रास्ते पर जाते हुए कई बार दूर से जिस पहाड़ देख कर डर लगता था कि वो कभी भी सड़क पर लैंड स्लाइड कर सकता है कुछ देर बाद हम लोगों की कार उसी पहाड़ से गुजरती थी । और जान बिलकुल हलक मे अटकी रहती थी । हालाँकि ड्राइवर का कहना था कि ये बहुत ही चलता हुआ रास्ता है और बस कुछ दूर बाद सड़क ठीक है ।और तकरीबन डेढ़ से दो घंटे ऐसे ही पथरीले
हालाँकि जनवरी को सीजन मानते है पर उस समय कुछ ज्यादा फूल वगैरा दिखाई नहीं देते है ठण्ड और बर्फ की वजह से ।जैसे ही हपोली पहुंचे की मौसम एकदम से बदल गया । और जब गेस्ट हॉउस हम लोग पहुंचे तो जैसे ही अपने कमरे मे गए तो लगा कि हाथ कि उगलियाँ बिलकुल सुन्न सी हो गयी जबकि कमरे मे एक नहीं दो-दो हीटर चल रहे थे और हम गरम कपड़ों से लैस थे।खैर थोड़ी देर बाद हम भी settle हो गए थे।:)

चलिए जीरो के बारे मे भी कुछ बता देते है। जीरो के लोगों का ये कहना था की पहले जीरो को ही अरुणाचल प्रदेश की राजधानी बनाने के लिए सोचा गया था। पर बाद मे ईटानगर को राजधानी बनाया गया ।यहां की जनसंख्या करीब ५० हजार है और यहां पर स्कूल बहुत ज्यादा तकरीबन १०० के आस-पास है। पूरे अरुणाचल मे जीरो मे लिटरेसी रेट काफी ज्यादा है ऐसा यहां के लोग कहते है। यूँ तो जीरो मे दूसरी tribes भी रहती है पर यहां की मुख्य tribe का नाम अपातीनी (Apatini) है।जिनके लिए कहा जाता है कि ये अपनी जगह से कभी भी कहीं और नहीं जाते है। ।जीरो मे हरेक महिला अपनी पीठ पर टोकरी (ये टोकरी भी कई तरह कि होती है ) लेकर चलती हुई देखी जा सकती है ठीक उसी तरह जिस तरह हम लोग शॉपिंग बैग लेकर चलते है । फिर वो चाहे स्कूटर पर जा रही हो या पैदल चल रही हो ।
जीरो के लिए एक किस्सा बहुत मशहूर है । बात ५० के दशक की है । उस समय के प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु जी अपनी बेटी इंदिरा गाँधी के साथ नेफा के दौरे पर आये थे। और जब वो जीरो गए तो वहां के अपातीनी tribe के मुखिया padi Lailang ने नेहरु जी के ये पूछने पर की उन्हें क्या चाहिए । तो padi Lailang ने जिनकी उस समय कई बीबियाँ थी तब भी उन्होंने नेहरु जी के साथ आये एक अफसर जिसे उनकी भाषा आती थी उससे कहा की नेहरु जी को कितने मिथुन चाहिए इंदिरा जी की शादी उनसे कराने के लिए।क्यूंकि ज्यादा मिथुन और बीबियाँ होना status symbol माना जाता था । ये सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग हंस पड़े ।और padi lailang समझ नहीं पाए कि आखिर उन्होंने गलत क्या कहा। और ये किस्सा हम लोगों को padi Lailang के बेटे ने ही सुनाया है ।
आज पोस्ट बहुत लम्बी हो गयी है इसलिए बाकी अगली पोस्ट मे । :)
जीरो का यात्रा वृत्तांत बहुत ही मजेदार रहा. तस्वीरों का तो कहना ही क्या. बड़े में अधिक खूबसूरत लगे.
ReplyDeleteघूमने का मन करने लगा है जी....फोटो भी अच्छे हैं.....
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