अरुणाचल प्रदेश के
चांगलांग डिस्ट्रिक्ट के म्याऊं (MIAO)
में छठे नाम्दाफा इको-कल्चरल Festival का आयोजन
५ से ७ फरवरी २०११ के बीच में किया गया था। और इसका invitation हम लोगों को भी आया था तो जाहिर सी बात है कि हम लोगों को इसे देखने जाना चाहिए था। और
बस फिर क्या था बैग पैक किया और चल दिए इस Festival को देखने के लिए।

ईटानगर से म्याऊं ५४६ कि.मी. है और
नाम्दाफा म्याऊं से ३० कि.मी.आगे है खैर नाम्दाफा के बारे में हम बाद में लिखेंगे। फिलहाल तो इस Festival के बारे में आप लोगों को बता दे।
४ फरवरी को सुबह कार से हम लोग म्याऊं के लिए चल दिए ।और ये तय हुआ कि मोहनबारी में हम लोग रुक कर अगले दिन सुबह म्याऊं जायेंगे क्यूंकि
carry (हमारा doggi) भी साथ था और उसके लिए रुकते हुए जाना ही ठीक रहता है।
:)
वैसे म्याऊं जाने के लिए
मोहनबारी से जाते है और मोहनबारी जाने के दो रास्ते है एक तो
धेमाजी से जाकर
ब्रहमपुत्र नदी को क्रोंस करके , जिसमे फेरी से जाना पड़ता है और इस फेरी
तक पहुँचने के लिए १५ कि.मी. का उबड़-खाबड़ रास्ता और फिर थोडा बालू वाला रास्ता जिसमे अक्सर कार
वगैरा फंस जा
ती है। और फेरी भी ऐसी जिसपर पहली बार चढ़ने वाले को तो डर लग जाए। हम तो अंडमान और गोवा कि फेरी को देखकर सोचते थे कि इनकी हालत कितनी खराब है पर जब असाम कि
फेरी पर गए तो लगा कि अंडमान और गोवा की फेरी तो बहुत ही अच्छी
थी।
यहां लकड़ी की एक बड़ी सी नाव पर दो लकड़ी के पटरे रक्खे जाते है जिसे दो आदमी जोर से पकड़ते है और फिर इन्ही पटरों से कार को नाव में चढ़ाया जाता है। और उसके बाद कार को
रस्सी से नीचे बाँध दिया जाता है । कार चढाने या उतारने में जरा भी गड़बड़ हुई तो कार सीधे पानी में ।
जब नाव चलनी शुरू हुई तब तो हम काफी डर रहे थे पर जब दूसरे छोर पर किनारा दिखने लगा तब जान में जान आई।
और
कार के लिए ये लोग ६०० चार्ज करते है और
५० रूपये हर सवारी के । पर हाँ ड्राईवर के लिए कोई पैसा नहीं लेते है। और एक boat में १०० से २०० लोग
(ऐसा नाव वाले कहते है हालाँकि देख कर ऐसा नहीं लगा )और २ गाडी और २-३ मोटर साइकिल ले जाते है। और इस फेरी से ब्रह्मपुत्र नदी को पार करने में ४० मिनट लगते है। इस रास्ते से जाने पर मोहनबारी ५-६ घंटे में पहुँचते है।
मोहनबारी के लिए दूसरा रास्ता
तेजपुर,काजीरंगा ,जोरहाट,शिवसागर होते हुए जाता है जो की काफी अच्छा रास्ता है पर इसमें ९-१० घंटे लगते है मोहनबारी पहुँचने के लिए।पर ड्राईवर लोग नदी वाले रास्ते को ज्यादा पसंद करते है।

खैर हम लोग ब्रह्मपुत्र नदी वाले शोर्ट - कट रास्ते से गए और ६ घंटे में मोहनबारी पहुँच गए। डिब्रूगढ़ हवाई
अड्डा जो कि १५ कि.मी दूर है वो मोहनबारी में है ।शाम को मोहनबारी में हम लोग
विष्णु मंदिर जो कि गणेश बारी में है देखने गए। इस मंदिर में दो तरह का भवन निर्माण देखने को मिला एक तो
उत्तर भारत के मंदिरों का स्टाइल और दूसरा
राजस्थानी स्टाइल। और मंदिर के एक भाग में
गांधी जी की मूर्ति भी दिखी। वैसे इस मंदिर के लिए ये भी कहते है की ये ब्रिटिश समय का मंदिर है और आजकल इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी वहां के चाय बागान के मालिक लोग उठा रहे है। डिब्रूगढ़ में
एक island और कुछ और घूमने की जगहें है भी है पर स
मय की कमी के कारण इस बार हम लो

ग वहां नहीं जा पा
ए।अगली सुबह यानी की ५ तारीख को हम लोग सुबह-सुबह म्याऊं के लिए चल पड़े ।मोहनबारी से म्याऊं तकरीबन १४० की.मी है और सु
बह-सुबह जाने मे ट्रैफिक कम मिलता
है वर्ना बहुत समय लग
जाता है । मोहनबारी से मियाऊं जाते हुए रेलवे ट्रैक पूरे रास्ते तक चलता है। ये रास्ता और सड़क दोनों ही बहुत ही अच्छे है और driving का मजा भी है । इस
म्याऊं के रास्ते में कुछ ऐसे जगहों से गुज
रे जिनके नाम सिर्फ ट्रेन के नाम से ही जानते थे जैसे
डिब्रूगढ़ राजधानी,तिनसुखिया मेल।
:)तिनसुखिया, लीडो,
( यहां पर coal mines है) दिगबोई (रिफाइनरी है )मार्गरीटा ,और लेखापानी (जहाँ पर पूर्वोत्तर का आखि
र रेलवे स्टेशन था )होते हुए तकरीबन ढाई घंटे में
म्याऊं पहुँच गए। सर्किट हाउस में चाय पीकर और carry को settle करके हम लोग Festival देखने
के लिए गए।
Festival के आयोजन स्थल पहुँचने पर एक बड़ा सा बम्बू से बना हुआ गेट दिखा जिस पर welcome लिखा था और इस गेट तक जाने के लिए बम्बू का छोटा सा पुल पार करके जाते थे। और पुल पार करने पर पुल के दोनों और चांगलांग में रहने वाली विभिन्न tribes की पारंपरिक वे
शभूष में लड़
कियां स्वागत के लिए खड़ी थी ।

यहां से बायीं ओर जाने पर लोकल ट्राइबल खाने-पीने की स्टाल थी और इन दुकानों से आगे बढ़ने पर एक और छोटा सा बम्बू का पुल पार करने पर चांगलांग मे रह रहे विभिन्न tribes जैसे
गोरखा,पंघ्वा,शिंग्पो,तिखाक, युबिन वगैरह के अलग -अलग तरह के बम्बू के घर देखे। ये घर
शिंग्पो का है।

यूँ तो इन सभी के घर बम्बू से बने थे पर फिर भी हर tribe के घर अन्दर और बाहर से अलग -अलग
थे ।वैसे ज्यादातर घरों मे २ कमरे से होते है और हर घर मे
आग जलाने का इंतजाम जरूर रहता है। और ये multipurpose होता है । इसे खाने बनाने ,ठण्ड मे आग तापने और बरसात के दिनों मे गीली लकड़ी को इसके ऊपर दाल कर सुखाते है और फिर उसे आग जलाने के लिए इस्तेमाल करते है। इन सभी tribes मे गृह प्रवेश और घर की
सुख-शांति के लिए बलि देने का भी रिवाज है।ये
पंग्वा tribe का घर है।

मुक्लोम tribe नए घर मे जाने के पहले बलि देते है और फिर उसी रक्त
से घर को रंगते है । और इसे बहुत ही औस्पिशस मानते है
।
इस ३ दिन के फेस्टिवल मे फैशन शो ,ट्रेडीशनल ट्राइबल गेम्स और स्पोर्ट्स ,बम्बू रेस ,इको वॉक ,ट्रैकिंग तो थे ही और इनके अलावा सुबह
नौ बजे से शाम तक अलग-अलग तरह के कल्चरल कार्यक्रम होते रहते थे।
जिनके बारे में हम आगे लिखेंगे।
:)इन घरों मे हम घूम ही रहे थे कि इस फेस्टिवल के मुख्य अतिथि के आगमन की घोषणा हुई।
अब इससे आगे फेस्टिवल के उद्घाटन की बातें बाकी अगली पोस्ट मे ।