Thursday, April 22, 2010

थेरावदा बौद्ध धर्म का शंकेन फेस्टिवल

बीते १४ अप्रैल को एक साथ तीन-चार त्यौहार पड़े थे जिनमे आसाम का बिहू , तमिल नाडू का पोंगल ,पंजाब का बैसाखी का त्यौहार,केरल मे विशु तथा बौद्ध धर्म का शंकेन फेस्टिवल पड़े थे।
आज हम शंकेन के बारे मे लिखने जा रहे है ।हो सकता है शंकेन के बारे मे आपने सुना हो पर हमने बौद्ध धर्म के इस त्यौहार के बारे मे यही आकर जाना तो सोचा कि आप लोगों को भी इसके बारे मे बताया जाए।
ये त्यौहार थेरावदा बौद्ध धर्मं के अनुयायी नए साल के रूप मे मनाते है ।इसे एकता,समृद्धि के साथ-साथ नौज-मस्ती का त्यौहार भी माना जाता है। शंकेन शब्द संस्कृत के संक्रांति से लिया गया है । थेरावदा बौद्ध धर्मी मानते है की सूरज अपनी घूमने की प्रक्रिया मेष राशि से शुरू करके आखिरी राशि मीन मे आने के बाद जब पुन मेष मे प्रवेश करता है तो इसे बौद्ध धर्मी नए सूरज का आगमन मानते है और इसे नया साल कहते है।ये फेस्टिवल एशिया के म्यनमार ,थाईलैंड,कम्बोडिया,श्री लंका,बंगलादेश के साथ-साथ उत्तर-पूर्वी भारत मे भी मनाया जाता है।१४ अप्रैल को ९ बज कर २८ मिनट पर एशिया के ज्यादातर देशों मे एक साथ ही इसकी पूजा शुरू हुई थी। और ये त्यौहार तीन दिन तक चलता है।पहले दिन भगवान की मूर्ति बाहर निकालते है और तीसरे दिन भगवान बुद्ध की प्रतिमा को वापिस मुख्य मंदिर मे रखा जाता है । इसमें भगवान बुद्ध की मूर्ति को मुख्य मंदिर से बाहर निकाल कर बाहर प्रांगण मे बने छोटे से मंदिर मे रखते है। और इस मंदिर के बीचों- बीच बम्बू से बनी एक व्हिर्ल मशीन सी बनी होती है जिसे कोंग्पन (kongpan )कहते है और जिसमे बहुत सारे छेद होते है और इसका एक सिरा पानी के पाईप से जुड़ा होता है । और ये बहुत ही रंगीन और सुन्दर होती है।इस मंदिर मे भगवान बुद्ध की मूर्ति को इस कोंग्पन के चारों ओर गोलाकार ढंग से इस तरह से रखते है । जिससे जब कोंग्पन से जुड़े सिरे पर पानी डाला जाता है और पानी के कारण जब कोंग्पन घूमता है तो इसमें बने हुए छिद्रों से पानी भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर पड़ता है। और ये प्रक्रिया बिना रुके पूरे दिन दिन तक चलती है

इस दिन भगवान बुद्ध की प्रतिमा को स्नान तो कराया जाता है पर इसमें एक बात ख़ास ये है की इसमें सिर्फ एक बार नहीं बल्कि कम से कम ७ बार पानी डाला जाता है। और ना केवल बुद्ध की प्रतिमा पर बल्कि मोनेस्ट्री मे हर स्थान को पानी से धोने की प्रक्रिया की जाती है।प्रतिमा को स्नान करवाने के बाद वहां मोमबत्ती और अगरबत्ती जलाते है और पूजा करते है। और इस सबके बाद मोनेस्ट्री के मुख्य मंदिर मे जाकर भी पूजा करते है ।

इस त्यौहार को water festival भी कहा जाता है क्यूंकि इस दिन सभी लोग एक -दूसरे पर पानी डालते है (होली स्टाइल मे )।लोग अपने कपडे भी लेकर आते है ताकि पानी मे भीगने के बाद कपडे बदल सके। पूरी मोनेस्ट्री मे हर तरफ पानी से भीगे लोग दिखाई देते है या फिर लोग एक-दूसरे पर पानी डालते हुए नजर आते है। हम लोग भी जब सुबह इस मोनेस्ट्री मे पहुंचे तो गेट पर ही एक सज्जन ने हम लोगों को रोका और सावधान किया कि अगर आप अन्दर आयेंगे तो बिना भीगे वापिस नहीं जा पायेंगे । तो हमने कहा कि बाद मे ना पहले हम फोटो तो खींच ले। तो वो बोले कि हाँ ।
फिर हम लोग जैसे ही मोनेस्ट्री के अन्दर चले कि चारों ओर बड़े-बच्चे ,लड़के-लड़कियां सभी लोग छोटी-छोटी पानी की बाल्टी लेकर पहले भगवान बुद्ध को स्नान करवाते हुए दिखे ।और फिर मोनेस्ट्री मे बने स्तूप और हर तरफ पानी डालते हुए दिखे। और जब हम बड़े मजे से विडियो बना रहे थे तो एक महिला (नीचे फोटो मे उनकी पीठ दिख रही है। )ने पीछे से हम पर भी पानी डाल दिया था। :)

कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे कि एक दिन मे हम कितने फेस्टिवल देखते है :) अरे ऐसा कुछ नहीं है ,दरअसल festival के बारे हमें पहले से पता नहीं था उसी दिन सुबह अखबार मे पढ़ा तो बस इसे देखने पहुँच गए :)
अरे अगर देखेंगे नहीं तो फिर लिखेंगे कैसे :)



6 comments:

  1. बहुत रोचक पोस्ट शंकेन के बारे में पहली बार सुना ..."

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  2. बहुत रोचक पोस्ट
    ...

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  3. शंकेन के बारे में पहली बार ही जानकारी मिली. थेरावदा बौद्ध धर्मं के बारे में भी आपने ही बताया. हम तो हीनयान औरे महायान तक सीमित थे. विडियो की गति कुछ अधिक हो गयी. आभार.

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  4. अप तो सांस्कृतिक दूत /अम्बेसडर बन गयी हैं ! यह भी बढियां रिपोर्ट !

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  5. We celebrated "Songkran" here. Its more or less like Holi in India. We play 'Holi' with colours while here in Thailand they play with chilled water.. The word 'Songkran' has been taken from 'Sankranti'.

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  6. हिंदी ब्लॉग को समादरण करने की श्रृंखला में आज आपके ब्लॉग को सृजनगाथा www.srijangatha.com पर आदृत किया गया है । शुभकामनाएँ

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